घर वापसी
पाठक चक्रवर्ती अपने मुहल्ले के लड़कों का नेता था । सब उसकी आज्ञा मानते थे । अगर कोई उसके खिलाफ़ जाता तो उस पर आफत आ जाती , सब मुहल्ले के लड़के उसे मारते । आखिरकार बेचारे को मजबूर होकर पाठक से माफ़ी मांगनी पड़ती । एक बार पाठक ने एक नया खेल सोचा । नदी के किनारे लकड़ी का एक बड़ा लट्ठा पड़ा था , जिसकी नौका बनाई जाने वाली थी । पाठक ने कहा- ” हम सब मिलकर उस लट्ठा को लुड्काएंगे , लट्ठा का मालिक हम पर गुस्सा होगा और हम सब उसका मजाक उड़ाकर खूब हंसेंगे । ” सब लड़कों ने मान लिया ।
जब खेल शुरू होने वाला था तो पाठक का छोटा भाई मक्खन बिना किसी से एक शब्द कहे उस लठ्टे पर बैठ गया । लड़के रुके और एक पल तक चुप रहे । फिर एक लड़के ने उसे धक्का दिया , लेकिन वह न उठा । यह देखकर पाठक को गुस्सा आया । उसने कहा- ” मक्खन , अगर तू न उठेगा तो इसका बुरा नतीजा होगा । ” लेकिन मक्खन यह सुनकर और आराम से बैठ गया ।
अब अगर पाठक कुछ हल्का पड़ता , तो उसकी बेईज्ज़ती हो जाती । बस , उसने आज्ञा दी कि लट्ठा लुढ़का दिया जाये । लड़के भी आज्ञा मिलते ही एक – दो – तीन कहकर लठ्टे की ओर दौड़े और सबने जोर लगाकर लठ्टे को धकेल दिया । लठ्टे को फिसलता और मक्खन को गिरता देखकर लड़के बहुत हंस रहे थे लेकिन पाठक को थोडा डर लगने लगा क्योंकि वह जानता था कि इसका नतीजा क्या होगा । मक्खन ज़मीन से उठा और पाठक को लात और घुसा मारकर घर की ओर रोता हुआ चल दिया ।
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पाठक को लड़कों के सामने हुए इस अपमान से बहुत बुरा लगा । वह नदी – किनारे मुंह – हाथ धोकर बैठ गया और घास तोड़ – तोड़कर चबाने लगा । इतने में एक नौका वहां आई जिसमें एक बड़ी उम्र का आदमी बैठा था । उस आदमी ने पाठक के पास आकर पूछा- ” पाठक चक्रवर्ती कहां रहता है ? ” पाठक ने लापरवाही से बिना किसी ओर इशारा किए हुए कहा- ” वहां , ” और फिर घास चबाने लगा । उस आदमी ने पूछा- ” कहां ? ” पाठक ने अपने पांव फैलाते हुए बेरुखी से जवाब दिया ” मुझे नहीं मालूम । ” इतने में उसके घर का नौकर आया और कहा- ” पाठक , तुम्हारी मां तुम्हें बुला रही है ।
” पाठक ने जाने से इन्कार किया , लेकिन नौकर क्योंकि मालकिन की ओर से आया था , इस वजह से वह उसे जबर्दस्ती मारता हुआ ले गया . पाठक जब घर आया तो उसकी मां ने गुस्से में पूछा ” तूने मक्खन को फिर मारा ? ” पाठक ने जवाब दिया- ” नहीं तो , तुमसे किसने कहा ? ” मां ने कहा- ” झूठ मत बोल , तूने मारा है । ” पाठक ने फिर जवाब दिया- ” नहीं यह बिल्कुल झूठ है , तुम मक्खन से पूछो । ” मक्खन क्योंकि कह चुका था कि भैया ने मुझे मारा है इसलिए उसने अपने शब्द कायम रखे और दोबारा कहा- ” हां – हां तुमने मारा है । ” यह सुनकर पाठक को गुस्सा आया और मक्खन के पास आकर उसे मारना शुरू कर दिया । उसकी मां ने उसे तुरन्त बचाया और पाठक को मारने लगी ।
पाठक ने अपनी मां को धक्का दिया । धक्के से फिसलते हुए उसकी मां ने कहा- ” अच्छा , तू अपनी मां को भी मारना चाहता है । ” ठीक उसी समय वह बड़ी उम्र का आदमी घर में आया और कहने लगा- ” क्या किस्सा है ? ” पाठक की मां ने पीछे हटकर आने वाले को देखा और तुरन्त ही उसका गुस्सा आश्चर्य में बदल गया । उसने अपने भाई को पहचाना और कहा- ” क्यों दादा , तुम यहां ? कैसे आये ? ” फिर उसने नीचे झुकते हुए उसके पैर छुए । उसका भाई विशम्भर उसकी शादी के बाद बम्बई चला गया था , वह व्यापार करता था ।
अब कलकत्ता अपनी बहन से मिलने आया था क्योंकि बहन के पति की मौत हो गई थी । कुछ दिन तो बड़ी हंसी ख़ुशी के साथ बीते । एक दिन विशम्भर ने दोनों लड़कों की पढ़ाई के बारे में पूछा । उसकी बहन ने कहा- ” पाठक हमेशा दु : ख देता रहता है और बहुत चंचल है , लेकिन मक्खन का पढ़ाई में बहुत दिल लगता है । ” यह सुनकर उसने कहा- ” मैं पाठक को बम्बई ले जाकर पढ़ाऊंगा । ” पाठक भी चलने के लिए सहमत हो गया । मां के लिए यह बहुत ख़ुशी की बात थी , क्योंकि वह हमेशा डरा करती थी कि कहीं किसी दिन पाठक मक्खन को नदी में न डूबो दे या उसे जान से न मार डाले । पाठक हर रोज़ मामा से पूछता कि तुम किस दिन चलोगे ।
आखिरकार चलने का दिन आ ही गया । उस रात पाठक से सोया भी न गया , वो सारा दिन जाने की खुशी में इधर – उधर फिरता रहा । उसने अपनी मछली पकड़ने की हत्थी , पत्थर के छोटे – छोटे टुकड़े और बड़ी पतंग भी मक्खन को दे दी , क्योंकि उसे जाते समय मक्खन से हमदर्दी सी हो गई थी ।
बम्बई पहुंचकर पाठक अपनी मामी से पहली बार मिला । वह उसके आने से ज़्यादा ख़ुश न हुई ; क्योंकि उसके तीन बच्चे ही काफी थे , एक और चंचल लड़के का आ जाना उसके लिए मुसीबत के समान था । पाठक जैसे लड़के के लिए उसका अपना घर ही स्वर्ग होता है , उसके लिए नए घर में नए लोगों के साथ रहना बहुत मुश्किल हो गया । पाठक का वहाँ सांस लेना भी दुशवार हो गया था । वह हर रोज़ रात को अपने नगर के सपने देखा करता और वहां जाने की इच्छा करता रहता । उसे वह जगह याद आती जहां वह पतंग उड़ाता था और जहां वह जब चाहता जाकर नहाया करता था । मां का ध्यान उसे दिन – रात बेचैन करता रहता ।
उसकी सारी शक्ति ख़त्म हो गई … अब स्कूल में उससे ज़्यादा कमजोर कोई स्टूडेंट न था । जब कभी उसके टीचर उससे कोई सवाल करते , तो वह चुपचाप खड़ा हो जाता और टीचर की मार सहन करता । जब दूसरे लड़के खेलते तो वह अलग खड़ा होकर घरों की छतों को देखा करता । एक दिन उसने बहुत हिम्मत करके अपने मामा से पूछा – ” मामाजी , मैं कब तक घर जाऊंगा ? ” मामा ने जवाब दिया- ” ठहरो , जब तक कि छुट्टियां न हो जाएं । ” लेकिन छुट्टियों में अभी बहुत दिन बचे थे , इसलिए उसे काफी इंतज़ार करना पड़ा । इस बीच एक दिन उसने अपनी किताब खो दी ।
अब उसके लिए अपना पाठ याद करना बहुत मुश्किल हो गया । आए दिन उसके टीचर उसे बड़ी बेरहमी से मारते थे । उसकी दशा इतनी खराब हो गई कि उसके मामा के बेटे को उसे अपना भाई कहने में शर्म आती थी । पाठक मामी के पास गया और कहने लगा- ” मैं स्कूल न जाऊंगा , मेरी किताब खो गई है । ” मामी ने गुस्से से अपने होंठों को चबाते हुए कहा- ” दुष्ट ! मैं तुझे कहां से महीने में पांच बार किताब खरीद कर दूं ? ” इस समय पाठक के सिर में दर्द उठा , वह सोचता था कि मलेरिया हो जाएगा ; लेकिन सबसे बड़ी बात ये थी कि बीमार होने के बाद वह घर वालों के लिए एक आफत बन जायेगा ।
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दूसरे दिन सुबह पाठक कहीं भी दिखाई न दिया । उसे चारों तरफ खोजा गया लेकिन वह न मिला । बारिश बहुत ज़्यादा हो रही थी और वे आदमी जो उसे खोजने गये थे , बिल्कुल भीग गये । आखिरकार विशम्भर ने पुलिस को ख़बर दी । दोपहर के समय पुलिस का सिपाही विशम्भर के रवाज़े पर आया । बारिश अब भी हो रही थी और सड़कों पर पानी भरा था । दो सिपाही पाठक को हाथों पर उठाए हुए लाए और विशम्भर के सामने रख दिया । पाठक सिर से पांव तक कीचड़ में सना हुआ था और उसकी आंखें बुख़ार से लाल थीं । विशम्भर उसे घर के अन्दर ले गया , जब उसकी पत्नी ने पाठक को देखा तो कहा- ” यह तुम क्या मुसीबत ले आये , अच्छा होता जो तुम इसे घर भिजवा देते ।
” पाठक ने यह शब्द सुने और सिसकियां लेकर कहने लगा- ” मैं घर जा तो रहा था लेकिन वे दोनों मुझे जबर्दस्ती ले आए । ” उसका बुख़ार बहुत तेज़ हो गया था । सारी रात वह बेहोश पड़ा रहा , विशम्भर एक डॉक्टर को लाया । पाठक ने आंखें खोली और छत की ओर देखते हुए कहा- ” छुट्टियां आ गई हैं क्या ? ” विशम्भर ने उसके आंसू पोंछे और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसके सिरहाने बैठ गया । पाठक ने फिर बड़बड़ाना शुरू किया- ” मां , मां मुझे इस तरह न मारो , मैं सच – सच बताता हूं । ” दूसरे दिन पाठक को कुछ होश आया ।
उसने कमरे के चारों ओर देखा और एक ठण्डी सांस लेते हुए अपना सिर तकिए पर डाल दिया । विशम्भर समझ गया और उसके करीब जाकर कहा – ” पाठक , मैंने तुम्हारी मां को बुलाया है । ” पाठक फिर उसी तरह चिल्लाने लगा । कुछ घंटों बाद उसकी मां रोती हुई कमरे में आई । विशम्भर ने उसे शांत रहने के लिए कहा , लेकिन वह न मानी और पाठक की चारपाई पर बैठ गई और चिल्लाते हुए कहने लगी ” पाठक , मेरे प्यारे बेटे पाठक ! ” पाठक की सांस कुछ समय के लिए रुकी , उसकी नाड़ी हल्की पड़ी और उसने एक सिसकी ली । उसकी मां फिर चिल्लाई- ” पाठक , मेरे आंख के तारे , मेरे दिल के टुकड़े ! ” पाठक ने बहुत धीरे से अपना सिर दूसरी ओर किया और बिना किसी ओर देखते हुए कहा- ” मां ! क्या छुट्टियां आ गई हैं ?
Thank you sir ji bahut achhi kahani hai. Aisi hi kahaniya post karte rahiye.