प्रारंभिक जीवन
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 ईस्वी को गोविंदपुरा (जो वर्तमान में पाकिस्तान का क्षेत्र है) में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था|
Milkha Singh
वह अपने मां बाप के 15 संतान में से एक थे,इन का प्रारंभिक जीवन बहुत ही कष्ट में एवं संघर्ष भरा रहा|लेकिन इन सबसे अलग उन्होंने संघर्ष कर एक ऐसे आदर्श जीवन को रखा जो ना केवल भारतीय अभी तो पूरी दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत बने|
बचपन में पढ़ने लिखने में ठीक थे|गांव से स्कूल दूर होने के कारण मिल्खा रोज़ाना नदी तैरकर स्कूल जाया करते थे| सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, इसी बीच आजादी का आंदोलन जन व्याप्त और तीव्र हो उठा आखिरकार देश आजाद हुआ|लेकिन अपनी आजादी के साथ एक दंश भी लेकर आया जो उस समय के साक्षी भारतीयों के जेहन में आज भी चुभता है|इन्हीं मार्मिक एवं कष्टदाई स्थितियों के बीच से मिल्खा को भी गुजरना पड़ा|
भारत पाकिस्तान के विभाजन में इनके परिवार को इन्हीं के सामने मौत के घाट उतार दिया गया|लेकिन मिल्खा वहां से भाग निकले इस घटना ने उन्हें पूरी तरह झकझोर कर रख दिया|
अंततः वे शरणार्थी बनकर पाकिस्तान से भारत आ गए कुछ समय शरणार्थी कैंपों में तथा कुछ समय अपनी शादीशुदा बहन के घर में गुजारने के बाद मिल्खा दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनः स्थापित बस्ती में रहने लगे| अब इनके सामने इतनी भयंकर हादसे के बाद जीवन व्यतीत करने की चुनौती थी|
कुछ समय तक तो उन्होंने गैरकानूनी काम जैसे रेलगाड़ी से कोयले चुराने लगे और उन्हें बेचकर खर्चे चलाते थे|लेकिन कुछ दिनों बाद मिल्खा सिंह से अपने भाई मलखान सिंह के द्वारा कहने पर चार बार कोशिश करने के बाद सन 1951 इसवी में सेना में भर्ती हो गए|सेना में भर्ती होने के दौरान इन्होंने क्रॉस कंट्री रेस में विशेष प्रशिक्षण के लिए चुना गया|
बतौर सैनिक का समय
सेना में रहने के समय उन्होंने 200 मीटर तथा 400 मीटर की कई प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल की|इसके बाद भी वह लगातार प्रयास करते रहे|सन् 1956 में इंग्लैंड के मेलबर्न में ओलंपिक खेल में 200 तथा 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया लेकिन सफल ना हो सके|ओलंपिक के विजेता चार्ल्स फॉकिंग के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें नए अनुभव से अवगत कराया|
ओलंपिक तथा राष्ट्रीय खेल में
मेलबर्न में हारने के बाद मिल्खा सन् 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 मीटर 400 मीटर मे नया कीर्तिमान स्थापित किया|और इसी साल उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली|मिल्खा ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया|
इस प्रतियोगिता का को जीतने के बाद मिल्खा व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी बन गए|कॉमनवेल्थ वेल्थ स्वर्ण पदक जीतने के बाद मिल्खा सिखों ने की वजह से उन्हें लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने के रूप में लोगों ने उन्हें जानने लगे|
ठीक इसी दौरान सन 1960 में मिल्खा को पाकिस्तान से दौड़ने का न्योता मिला, लेकिन इनके साथ बचपन में हुई घटना के कारण वे वहां जाने से हिचक रहे थे|
लेकिन राजनीतिक गतिविधियों की वजह से उन्होंने वहां जाने का निर्णय लिया, जिसमें मिल्खा ने पाकिस्तान के प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को हराकर जीत हासिल की|
इसी के बाद जनरल लाइफ खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख का नाम दिया|इसके बाद विश्व भर में फ्लाइंग सिख के नाम से विख्यात हो गए 1960 में होने वाले रोम ओलंपिक में उन्होंने भाग लिया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह कांस्य भी ना जीत सके| जिसका मलाल मिल्खा को आज भी है, इस घटना से वह इतने निराश हुए की खेल से सन्यास लेने का मन बना चुके थे, लेकिन बहुत मनाने के बाद उन्होंने वापसी की और 1962 जकार्ता एशिया खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता|
सेवानिवृत्त
मिल्खा सिंह को सन् 1958 एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना द्वारा उन्हें `जूनियर कमीशंड ऑफिसर` के तौर पर पदोन्नति किया|पंजाब के खेल निदेशक पद से मिल्खा ने 1998 में सेवानिवृत्त हुए|
मिल्खा सिंह ने अपने द्वारा जीते गए सारे पदक को राष्ट्र को समर्पित कर दिया|वर्ष 1958 भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया|वर्ष 2013 में मिल्खा ने अपनी बेटी सोनिया, के साथ मिलकर अपनी आत्मकथा`द रेस ऑफ माय लाइफ` नामक किताब लिखी बाद में हिंदी फिल्म के निर्देशक राकेश ओम प्रकाश जी ने मिल्खा सिंह से प्रभावित होकर भाग मिल्खा भाग फिल्म बनाई जिसमें मिल्खा सिंह का किरदार मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया हैं
उपलब्धि
1-मिल्खा सिंह 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीटर 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता|
2-इन्होंने 1962 में एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता|
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में मिल्खा सिंह चंडीगढ़ में रहते हैं|तथा देश में होने वाले विविध तरह के खेल आयोजनों में शिरकत करते हैं उनके द्वारा हैदराबाद में 30 नवंबर 2014 को हुए 10 किलोमीटर की जिओ मैराथन 2014 में उन्होंने झंडा दिखाकर रवाना किया|
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