हिंदुओं के सबसे बड़े पर्व दीपावली को पर्वों की माला माना जाता है। पांच दिन तक चलने वाला ये पर्व सिर्फ भैयादूज तक ही सीमित नही है बल्कि यह पर्व छठ तक चलता है। उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व बेहद अहम पर्व है जो पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।

नाम | छठ पूजा |
अन्य नाम | छठ, सूर्य व्रत, उषा पूजा, छठी प्रकृति माई के पूजा, छठ पर्व, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी |
अनुयायी | हिन्दू, बिहारी, उत्तर भारतीय, भारतीय प्रवासी |
सबंधित धर्म | हिन्दू |
उद्देश्य | सर्वकामना पूर्ति |
अनुष्ठान | सूर्योपासना, निर्जला व्रत |
तिथि | दीपावली के छठे दिन |
समान पर्व | ललही छठ, चैती छठ, हर छठ |
Table of Contents
छठ क्यो मनाया जाता हैं?
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से मुख्य कहानियां निम्न है।
1. महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई।
2. माता सीता ने भी की थी सूर्यदेव (छठ) की पूजा
छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
क्या है छठ का पौराणिक महत्व
पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।
राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है। इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया । मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?
यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं।अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं।
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छठ का सामाजिक/सांस्कृतिक महत्त्व
छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।
शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के सहयोग की जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से किये गये सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।
छठ शुभकामना सन्देश
छठ क आज हैं पावन त्यौहार
सूरज की लाली, माँ का हैं उपवास
जल्दी से आओ अब करो न विचार
छठ पूजा का खाने तुम प्रसाद
छठ पूजा की शुभकामनाएँ
छठ पर्व से जुड़े कुछ सवाल
1. सनातन धर्म के अनेक देवी-देवताओं के बीच सूर्य का क्या स्थान है?
सूर्य की गिनती उन 5 प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है। पंचदेव में सूर्य के अलाव अन्य 4 हैं: गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु. (मत्स्य पुराण)
2. सूर्य की पूजा से क्या-क्या फल मिलते हैं? पुराण का क्या मत है?
भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले, अत्यंत दयालु हैं। वे उपासक को आयु, आरोग्य, धन-धान्य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्य देते हैं। वे सभी को चेतना देते हैं।
सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्त और अंधे नहीं होते।
सूर्य को ब्रह्म का ही तेज बताया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को देने वाले हैं, साथ ही पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं।
3. इस पूजा में लोग पवित्र नदी और तालाबों आदि के किनारे क्यों जमा होते हैं?
सूर्य की पूजा में उन्हें जल से अर्घ्य देने का विधान है। पवित्र नदियों के जल से सूर्य को अर्घ्य देने और स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। हालांकि यह पूजा किसी भी साफ-सुथरी जगह पर की जा सकती है।
4. छठ में नदी-तालाबों पर भीड़ बहुत बढ़ जाती है। भीड़ से बचते हुए व्रत करने का क्या तरीका हो सकता है?
इस भीड़ से बचने के लिए हाल के दशकों में घर में ही छठ करने का चलन तेजी से बढ़ा है। ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ की कहावत यहां भी गौर करने लायक है। कई लोग घर के आंगन या छतों पर भी छठ व्रत करते हैं। व्रत करने वालों की सुविधा को ध्यान में रखकर ऐसा किया जाता है।
5. ज्यादातर महिलाएं ही छठ पूजा क्यों करती हैं?
ऐसा देखा जाता है कि महिलाएं अनेक कष्ट सहकर पूरे परिवार के कल्याण की न केवल कामना करती हैं, बल्कि इसके लिए तरह-तरह के यत्न करने में पुरुषों से आगे रहती हैं। इसे महिलाओं के त्याग-तप की भावना से जोड़कर देखा जा सकता है।
छठ पूजा कोई भी कर सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। पर इतना जरूर है कि महिलाएं संतान की कामना से या संतान के स्वास्थ्य और उनके दीघार्यु होने के लिए यह पूजा अधिक बढ़-चढ़कर और पूरी श्रद्धा से करती हैं।
6. क्या यह पूजा किसी भी सामाजिक वर्ग या जाति के लोग कर सकते हैं?
सूर्य सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं। वे किसी तरह का भेदभाव नहीं करते। इस पूजा में वर्ण या जाति के आधार पर भेद नहीं है। इस पूजा के प्रति समाज के हर वर्ग-जाति में गहरी श्रद्धा देखी जाती है। हर कोई मिल-जुलकर, साथ-साथ इसमें शामिल होता है। हर जाति-धर्म के लोग इस पूजा को कर सकते हैं।
7. छठ या सूर्यषष्ठी व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?
इस व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है, जो प्रत्यक्ष दिखते हैं और सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं… सूर्य के साथ-साथ षष्ठी देवी या छठ मैया की भी पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें स्वस्थ और दीघार्यु बनाती हैं। इस अवसर पर सूर्यदेव की पत्नी उषा और प्रत्युषा को भी अर्घ्य देकर प्रसन्न किया जाता है। छठ व्रत में सूर्यदेव और षष्ठी देवी दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है। इस तरह ये पूजा अपने-आप में बेहद खास है।
8. सूर्य से तो सभी परिचित हैं, लेकिन छठ मैया कौन-सी देवी हैं?
सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है।
षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।
9. षष्ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे हुई? पुराण की कथा क्या है?
प्रथम मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी, इसके कारण वह दुखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्रेष्टि यज्ञ कराने को कहा. राजा ने यज्ञ कराया, जिसके बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन दुर्योग से वह शिशु मरा पैदा हुआ था। राजा का दुख देखकर एक दिव्य देवी प्रकट हुईं। उन्होंने उस मृत बालक को जीवित कर दिया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत खुश हुए. उन्होंने षष्ठी देवी की स्तुति की। तभी से यह पूजा संपन्न की जा रही है।
10. आध्यात्मिक ग्रंथों में सूर्य की पूजा का प्रसंग कहां-कहां मिलता है?
शास्त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है। पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी। श्रीराम ने आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ कर सूर्य देवता को प्रसन्न करने के बाद ही रावण को अंतिम बाण मारा था और उस पर विजय पाई थी।
श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था, तब उन्होंने सूर्य की उपासना करके ही रोग से मुक्ति पाई थी…सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से होती आई है।