The Power of Habit Book Summary In Hindi | Charles Duhigg

परिचय:-

The Power of Habit Book Summary In Hindi
नमस्कार मित्रो एक बार फ़िर आपका स्वागत है क़िताबी Rang में । मित्रों  आज मैं Charles Duhigg द्वारा लिखे गये किताब The Power of Habit के बुक संमरी लेकर हाजिर हूँ। तो आइये बिना कोई देर किए शुरू करते है।
 

अरस्तू से ले कर ओपरा तक अनगिनत औरों की तरह जेम्स ने अपना अधिकांश जीवन यह समझने में बिता दिया कि आखिर आदतें होती क्यों हैं । परंतु केवल विगत दो दशकों में वैज्ञानिकों और मार्केटरों और ने वास्तव में यह समझना शुरु किया है कि आदतें कैसे काम करती हैं — और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण — कि यह बदलती कैसे हैं ।

आज सुबह जब आप नींद से जगे , आपने सबसे पहले क्या किया ? लपक कर शावर के नीचे चले गए , ईमेल चेक किया , या किचन काउंटर से एक डोनट उठा लिया ? आपने नहाने से पहले दाँतों को ब्रश किया या बाद में ? काम पर किस रास्ते से ड्राइव करते हुए गए ? जब आप घर लौटे , तब क्या आपने स्नीकर्स पहना और दौड़ने निकल पड़े , या अपने लिए एक ड्रिंक ग्लास में डाला और टीवी के सामने डिनर के लिए बैठ गए ?

विलियम जेम्स ने 1892 में लिखा था , ” हमारा पूरा जीवन , जब तक यह एक निश्चित आकार में है , आदतों का पुंज है । “ हर दिन किए गए चुनाव हमें सोच – समझ कर लिए गए निर्णयों के परिणाम लग सकते हैं , पर वे हैं नहीं । ये आदतें है । और हालांकि हर आदत का अपने – आप में कुछ मायने नहीं होता , समय के साथ , हम किस खाने का ऑर्डर देते हैं , बचत करते हैं या खर्च करते हैं , कितने अक्सर कसरत करते हैं , और जिस तरह हम आपनी सोचों और काम की रूटीन को संवारते हैं – इनका हमारे स्वास्थ्य , प्रोडक्टिविटी , फायनेंशियल सिक्योरिटी और प्रसन्नता पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है । 2006 में प्रकाशित किए गए ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर के पेपर ने पाया कि लोगों द्वारा किए गए 40 प्रतिशत कार्य वास्तव में निर्णय नहीं थे , बल्कि आदते थीं ।

किसी समय – बिंदु पर , हम सभी ने सोच – समझ कर निश्चय किया था कि कितना खाना खाएँ या जब हम ऑफिस पहुंचे तो फोकस कैसे करें , कितनी बार ड्रिंक लें और दौड़ने कब जाएँ । तब हमने चुनाव करना बंद कर दिया , और व्यवहार सहज हो गया । यह हमारी न्यूरोलॉजी का स्वाभाविक परिणाम है । और इसे समझते हुए कि यह कैसे होता है , आप जिसे भी पसंद करते हैं उन पैटर्न्स को फिर से बना सकते हैं ।

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आदत का फंदा : आदतें कैसे काम करती हैं –

जिस बिल्डिंग में मैसेज्यूसेट्स इंस्टिच्यूट ऑफ टेकनॉलजी ( MIT ) के ब्रेन और कॉग्निटिव सायंसेज का विभाग है उसमें लैबोरेटरीज भी हैं जो यूँ ही ताकने वालों को सर्जिकल थिएटर्स के गुड़ियाघर संस्करण दिखाई दे सकते हैं । उसमें रोबोटिक बाहों से लगी , चौथाई इंच से भी छोटे छोटे – छोटे स्कैल्पेल्स , ड्रिल्स , नहीं आरियाँ है । ऑपरेटिंग टेबल्स भी छोटे – छोटे हैं जैसे बच्चों की साइज के सर्जन्स के लिए बनाए गए हों ।

 इन लेबोरेटरीज़ के अंदर बेहोश किए गए चूहों की खोपड़ियाँ काटते हैं , और उनके अंदर नन्हें सेंसर्स इम्पालांट करते हैं जो उनके दिमागों के अंदर छोटे से छोटे बदलावों को रिकॉर्ड करती हैं । यह लैबोरेटरीज़ आदत – बनाने के विज्ञान में नीरव क्रांति का एपीसेंटर बन गई हैं , और उनमें किए जाने वाले प्रयोग इसकी व्याख्या करते हैं कि हम दैनिक जीवन के लिए आवश्यक आचरणों का विकास कैसे करते हैं ।

 लैबोरेटरीज़ के चूहें हमारे दिमागों में चलने वाली उन जटिलताओं पर प्रकाश डालते हैं जब हम दाँतों को ब्रश करना या ड्राइवे सा कार बैक करते हुए कार निकालने जैसा कोई साधारण काम करते हैं । खोपड़ी के केंद्र की ओर गॉल्फ की गेंद की साइज का टिश्यू पिंड होता है जिनके समान पिंड आप मछलियों , सरीसृपों या स्तनपाइयों के सिरों में भी पा सकते । यह अंडाकार कोशिका – पुंज , बेसल गैग्लिया है जिसे वैज्ञानिक वर्षों तक अच्छी तरह से समझ नहीं पाए थे , केवल उन संदेहों के सिवा कि पार्किंसंस जैसे रोगों में इसकी कोई भूमिका होती है ।

1990 के दशक के शुरू में , MIT के शोधकर्ताओं ने सोचना शुरू किया बेसल गैग्लिया आदतों के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है । उन्होंने लक्ष्य किया कि घायल बेसल गैग्लिया वाले प्राणियों को भूल – भुलैया से होकर दौड़ने तथा फूड कंटेनर्स को खोलना याद रखने में समस्याएँ हो रही हैं । उन्होंने नई माइक्रो टेकनॉलजीज का उपयोग करते हुए प्रयोग करने का निर्णय किया जिनसे वे उन सूक्ष्म विवरणों का निरीक्षण कर सकते थे जो दर्जनों रूटीन कार्य करते समय गृहों के दिमाग में चल रहे होते हैं ।

अंत में , प्रत्येक प्राणी को एक T आकार की भूलभुलैया में रखा गया जिसके एक सिरे पर चॉकलेट रखी गई थी । भूलभुलैया का ढांचा इस तरह बनाया गया था जिससे चूहे का स्थान एक पार्टीशन के पीछे था जो एक जोरदार क्लिक की आवाज किए जाने पर खुलता था । पहले – पहल जब वह क्लिक की | आवाज सुनता और पार्टीशन को गायब होते देखता तब यह साधारणतः केंद्रीय गलियारे में , कोनों को सूंघता और दीवारों को नचोटता हुआ आगे – पीछे घूमता – फिरता था । लगता था कि उसे चॉकलेट की सुगंध मिल रही थी पर वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उसे कैसे ढूँढ निकाले ।

जब यह T के शीर्ष पर पहुँचता , तब यह चॉकलेट से दूर , दाहिने मुड़ता , और तब कभी – कभी , बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के , रुक कर , बाईं ओर निकल जाता । अंत में , अधिकांश | इनाम मिल जाता था । परंतु उनके भटकाव में कोई प्रत्यक्ष पैटर्न नहीं था । लगता था कि हर चूहा फुर्सत से , बिना सोचे – विचारे टहल रहा था । फिर भी , चूहों के सिरों की जाँच एक अलग कहानी कहती थी ।


 चूहों ने के सूंघना और गलत मोड़ लेना बंद कर दिया । धीरे – धीरे बदलावों । एक सीरिज उभर आई । इसके बदले वे भूल – भुलैया से होकर तेजी से , और भी तेजी से निकलने लगे । और उनके दिमागों में कुछ अनएक्सपेक्टेड हो गया : जैसे – जैसे हर चूहा भूल – भुलैया से रास्ता ढूँढ कर निकलना सीखता गया , उसकी मानसिक ऐक्टिविटी कम होती गई । जैसे – जैसे रास्ता अधिक से अधिक सहज होता गया , हर चूहे ने कम — और भी कम सोचना शुरू कर दिया । ऐसा लगता था , जैसे पहले कई बार जब चूहे ने भूल – भुलैये में रास्ते की तलाश की , तब इसके दिमाग को नई सूचना को समझने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा कर काम करना पड़ता ।

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परंतु कुछ दिनों तक उसी एक रास्ते पर चलते रहने के बाद , चूहे को दिवाल खसोटने या हवा सूंघने की अब और आवश्यकता नहीं रह गई , और इसलिए खसोटने और सूंघने से संबंधित दिमागी ऐक्टिविटी समाप्त हो गई । इसे मुड़ने के लिए दिशा चुनने की दरकार नहीं रह गई , इसलिए दिमाग के निर्णय लेने वाले केंद्र शांत हो गए । जब प्रत्येक प्राणी भूल – भुलैया से में भटक रहा था , उसका दिमाग — और विशेष रूप से उसका बेसल सेंग्लिया — जल्दबाजी से काम कर रहा था । प्राणियों इसके दिमाग हर बार जब कोई चूहा हवा सूंघता या दीवार नचोटता , इसका दिमाग ऐक्टिविटी से विस्फोट करता , मानो वह प्रत्येक गंध , दृश्य और आवाज की ऐनैलिसिस कर रहा हो । अपने पूरे भटकाव के दौरान चूहा सूचना प्रोसेसिंग कर रहा था । सैकड़ों बार एक ही रास्ते चलते हुए की ऐक्टिविटी कैसी बदलती थी , इसका निरीक्षण करते हुए , वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को बार – बार दोहराया ।

मित्रों इसी के साथ अब आपसे बिदा लेते है मिलते एक नए बुक नए नज़रिये के साथ। तब तक के लिए नमस्कार। चूहे ने भूलभुलैया से होकर दौड़ कर निकल जाना इस हद तक अपना लिया था कि इसे सोचने की कोई भी आवश्यकता नहीं रह गई थी । परंतु दिमागी । निरीक्षणों ने सूचित किया कि अपनाना बेसल गैग्लिया पर निर्भर से – जैसे चूहा अपनी दौड़ने की गति बढाता गया , लगता था कि यह नन्हे , न्यूरोलॉजिकल ढांचे हावी हो गए हैं और दिमाग कम से कम काम कर रहा है । पैटर्न्स याद रखने तथा उन पर काम करने के केंद्र में बेसल गैग्लिया था । दूसरे शब्दों में , जब बाकी दिमाग सोने चला जाता , तब बेसल गैग्लिया आदतों को संग्रह करता ।

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