क्या है जीवन का उद्देश्य | सिद्धार्थ : हरमन हेस

किताब के बारे में

इस किताब के ऑथर हर्मन हेस ने गौतम बुद्ध के जीवन से प्रेरणा लेकर इस किताब में एक फिक्शनल किरदार सिद्धार्थ के बारे में बताया है जो किसी भी आम इंसान का प्रतीक है।

परिचय

क्या है जीवन का उद्देश्य | सिद्धार्थ : हरमन हेस

क्या आप महान तपस्वीयों के बारे में जानने की इच्छा रखते है ? क्या कभी आपके मन में उनके जीवन से जुडी बाते जानने की ईच्छा हुई है ? क्या उनका जीवन हमारे जीवन से अलग था ? इस किताब में आप ऐसे ही एक महान तपस्वी सिद्धार्थ की जिंदगी की कहानी पढेंगे और जानेंगे कि कैसे उन्होंने कठोर तपस्या करके ज्ञान की प्राप्ति की।

इस किताब में आप सीखेंगे कि सिद्धार्थ को भी एक आम इन्सान की तरह जिंदगी में कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा . सिद्दार्थ ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर संन्यास लिया पर सन्यास का रास्ता इतना आसान नही था . एक आम इन्सान की तरह ही उनके अंदर भी काम – क्रोध – लोभ – मोह जैसी बुराईयाँ थी और एक आम इंसान की तरह ही उन्होंने भी अपने जीवन में कई सारी गलतियाँ की पर इन सबके बावजूद उन्होंने हार नही मानी और अपनी सारी कमजोरियों और ईच्छाओं को जीत कर ज्ञान प्राप्त किया . तो आइए इस किताब को पढ़ते है और महापुरुष सिद्धार्थ के जीवन से कुछ प्रेरणा लेने की कोशिश करते है।

ब्राह्मण का बेटा

सिद्धार्थ एक ब्राहमण का बेटा था . वो बड़ा होनहार और तेज़ दिमाग लड़का था . उसे प्रकृति से बड़ा लगाव था इसलिए वो ज़्यादातर घर से बाहर ही रहा करता था . उसे जंगलो – पहाड़ो में घूमना और साधू – संतो की संगत में रहने से आनंद मिलता था . सिद्धार्थ को अपने पिता से ज्ञान की बातो पर चर्चा करना भी बड़ा अच्छा लगता था . सिद्धार्थ की तरह गोविंद भी एक ब्राह्मण का बेटा था और सिद्धार्थ के साथ उसकी गहरी दोस्ती थी . दोनों साथ मिलकर ध्यान और योग का अभ्यास करते थे।

सिद्धार्थ अपनी साधना और ध्यान के प्रति पूरी तरह से समप्रित था . उसके पिता जो उससे बेहद प्यार करते थे , उन्हें अपने होनहार बेटे पर गर्व था और वो हमेशा उसके सुनहरे भविष्य के सपने देखा करते थे . सिद्धार्थ के अंदर ज्ञान हासिल करने की प्रबल ईच्छा थी , वो इस विषय में और भी बहुत कुछ सीखना चाहता था . उसकी लगन को देखकर उसके पिता ने मन ही मन उसे एक महान संत और पुजारी के रूप में देखना शुरू कर दिया था . वास्तव में वो तेजस्वी ब्राहमण पुत्र आम लोगो से अलग और अनोखा था।

सिद्धार्थ सबका चहेता और दुलारा था . पिता की तरह उसकी माँ भी सिद्धार्थ पर गर्व करती थी . अपने भाई – बहनों का लाडला भाई सिद्धार्थ सबकी आँखों का तारा था . उसका दोस्त गोविंद तो जैसे उस पर जान छिडकता था . सिद्धार्थ को जानने वाले हर इन्सान को यकीन था कि एक दिन वो एक महान संत बनेगा।

यूं तो सब लोग सिद्धार्थ से प्यार करते थे , उसे बेहद चाहते थे पर इसके बावजूद वो खुश नही था . वो सबकी भावनाओं का सम्मान करता था , सबको खुश रखने की कोशिश करता था और इस बात से भी बखूबी वाकिफ था कि वो कितना खुशकिस्मत है कि लोग उससे इतना प्यार करते है , उसे सिर – आँखों पर बैठाते है . साधू – संतो की संगत में उसे ज्ञान की बाते सुनने को मिलती थी पर इन सबके बावजूद सिद्धार्थ को अपने जीवन में एक अधूरापन महसूस होता था , उसे ऐसा लगता जैसे उसकी अंतरात्मा जन्म – जन्मान्तर की प्यासी है।

फिर धीरे – धीरे वक्त के साथ सिद्धार्थ सबसे दूर होता चला गया . उसके मन में अनगिनत सवाल उठा करते थे , उसका जिज्ञासु मन हर वक्त सवालों के घेरे में उलझा रहता . उसे ज्ञान की बाते तो मालूम थी पर मन में शान्ति नही थी।

उसका मन उससे पूछता रहता ” क्या भगवान को चढ़ाया गया भोग सार्थक है ? आत्मा क्या है और कहाँ रहती है ? अगर आत्मा हाड़ – मांस नहीं है तो फिर क्या है , उसका असली रूप कैसा है ? ” वो जितना ज़्यादा सोचता उतना ही और उलझ जाता।

उसके सवालों ने उसे इतना परेशान कर दिया कि उसके दिन का चैन और रातो की नींद सब गायब होने लगे . फिर एक दिन सिद्धार्थ ने अपने दोस्त गोविंद से कहा कि वो दोनों एक वट के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान लगायेंगे . दोनों दोस्त कई घंटो तक ध्यान लगाकर बैठे रहे . शाम गहराई तो गोविंद की ध्यान साधना पूरी हुई पर सिद्धार्थ अभी भी आंखे बंद किये गहरे ध्यान में डूबा हुआ था . वो एक मूर्ती की तरह निश्चल और शांत लग रहा था।

सिद्धार्थ के दिमाग में उन तपस्वियों की तस्वीरे घूमने लगी जो दुनियादारी छोडकर संन्यास ले लेते है . उसका मानना था कि घोर कष्ट सहकर जो लोग कठोर तपस्या करते है , सिर्फ उन्हें ही मोक्ष की प्राप्ति होती है . कुछ देर बाद सिद्धार्थ ध्यान से उठा और उसने गोविन्द को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि वो अब एक तपस्वी बनेगा . सिद्धार्थ अपने पिता के कमरे में गया और उन्हें बताया कि वो संन्यास लेकर तपस्वियों का जीवन जीना चाहता है।

उसे यकीन था कि उसके पिता इस बात इंकार नही करेंगे पर उसके पिता ने बड़ी देर तक उसे कोई जवाब नही दिया . सिद्धार्थ की बातो ने उनका दिल तोड़ दिया था , वो उससे बेहद नाराज़ थे . उन्हें यकीन था कि सिद्धार्थ उनके बताये हुए रास्ते पर चलेगा और उनका नाम रोशन करेगा पर वो तो एक संन्यासी बनने की बाते कर रहा था . उन्होंने तो अपने बेटे के भविष्य के लिए कुछ और ही सोच रखा था . वो सिद्धार्थ को कमरे में अकेला छोडकर सोने चले गए पर ब्राहमण को रात भर नींद नही आई।

उन्होंने देखा कि सिद्धार्थ अभी तक उनके कमरे में ही खड़ा था . वो अपनी जगह से इंच भर भी टस से मस नही हुआ . ब्राह्मण रात में पांच – छह बार उसे देखने के लिए उठे पर सिद्धार्थ नही हिला . पूरी रात यूं ही गुजर गई , आखिर जब सुबह हुई तो सिद्धार्थ के पिता ने उसकी जिद के आगे घुटने टेक दिए . उन्होंने बड़े भारी मन से अपने बेटे को संन्यास लेने की आज्ञा दे दी।

आखिरी बार अपनी माँ से मिलने के बाद सिद्धार्थ ने हमेशा के लिए घर छोड़ दिया . घर से निकलते वक्त जब गोविन्द भी उसके साथ चलने लगा तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।

तपस्वीयों के साथ

जल्द ही सिद्धार्थ और गोविन्द को तपस्वियों की एक टोली मिली और वो दोनों उनके साथ चल पड़े . उनकी संगत में रहते – रहते उन्हें भी अब एक कठोर जीवन जीने की आदत पड़ चुकी थी . उन्होंने कम से कम साधनों में जीना सीख लिया . कपड़े के नाम पर वो लंगोट और एक लबादा पहनते था और अक्सर भूखे भी रहा करते थे . सिद्दार्थ के लिए अब जीवन के मायने बदल गए थे ।

वो लोगो को काम पर जाते देखता तो उसका मन कडवाहट से भर उठता . वो सोचा करता ” एक आम जिंदगी जीने में भला क्या सुख है ? कहीं ये लोग खुश रहने का नाटक तो नही कर रहे ? ” उसके मन में अब भी कई सवाल उठते थे , जिनका जवाब पाने के लिए वो तड़प रहा था . सिद्धार्थ तपस्वीयों की तरह जीना सीख चुका था . गोविन्द अब भी एक परछाई की तरह उसके साथ था . सिद्धार्थ ने इस दौरान खुद को कई तरह से शारीरिक कष्ट दिए , जैसे कि उसने दर्द , भूख और प्यास सहना सीख लिया था और वो ये भी समझ चुका था कि दुःख हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है इसलिए दुखो से कभी घबराना नही चाहिए . अब वो बिना विचलित हुए घंटो ध्यान साधना में बैठने लगा।

ध्यान के माध्यम से वो अपनी पांचो इंद्रीयों पर काबू पाना चाहता था क्योंकि उसके लिए आगे बढ़ने का यही एक तरीका था . अपने अहम का त्याग करके वो ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता था।

सिद्धार्थ और गोविन्द जब भिक्षा मांगने जाते तो दोनों बहुत सारी बातों पर चर्चा करते थे . सिद्धार्थ ने गोविन्द को बताया कि तपस्वीयों की संगत में रहने के बावजूद उसे अभी तक सच्चा ज्ञान नही मिल पाया था . सिद्धार्थ कुछ दिन और तपस्वियों के साथ रहा पर अपनी मोक्ष प्राप्ति के आसार उसे दूर – दूर तक नजर नही आ रहे थे।

दिन ब दिन उसकी निराशा बढ़ती जा रही थी हलांकि उसके दोस्त गोविन्द को ऐसा नही लगता था . उसने सिद्धार्थ को शिक्षा और ज्ञान की वो सारी बाते याद दिलाई जो अब तक उन लोगों ने सीखी थी . सिद्धार्थ ने उदासी से सिर हिलाते हुए हामी भरी . लेकिन जितना उसने सीखा था , वो काफी नही था . उसका मानना था कि अभी तो बहुत कुछ सीखना बाकी था . करीब तीन साल तक वो लोग तपस्वियों के साथ रहे।

फिर एक दिन शहर में भगवान बुद्ध के आने की खबर फैली . गौतम बुद्ध जिन्हें बुद्ध भी कहा जाता था , संसार के हर सुख – दुःख से ऊपर उठ चुके थे . उन्होंने अपने अनुभवों के बल पर ज्ञान की प्राप्ति की थी और इस ज्ञान को संसार में बांटने के लिए वो जगह – जगह अपने शिष्यों के साथ घूमा करते थे।

उनके चेहरे पर अद्भुत शांति थी , ऐसा तेज़ था कि उनकी शरण में आने वाला हर इंसान धन्य हो जाता था . गोविन्द भगवान् बुद्ध के दर्शन के लिए व्याकुल हो रहा था पर सिद्धार्थ को उनसे मिलने की जरा भी ईच्छा नही थी . वो ज्ञान और दर्शन की बाते सुन – सुनकर ऊब चुका था।

जब घर – बार त्यागने के बाद भी उसके मन को शांति नही मिल पाई तो ज्ञान की खोखली बाते सुनकर भला क्या मिलती . लेकिन अपने दोस्त के उत्साह को देखकर उसने भी गोविन्द के साथ जाने का मन बना लिया . दोनों ने फैसला किया कि वो तपस्वियों का साथ छोडकर अब गौतम बुद्ध की शरण में जायेंगे।

गौतम

सारा शहर गौरम बुद्ध के आने की खुशी मना रहा था . बहुत से लोग उनकी एक झलक देखने और दर्शन करने के लिए बेचैन थे तो बहुत से ऐसे भी थे जो उनसे शिक्षा लेना चाहते थे . गोविन्द और सिद्धार्थ लोगो से रास्ता पूछते – पूछते जेतवन तक पहुँच गए . उन्हें पता चला कि गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ जेतवन के एक बगीचे में आकर बैठे है . न दोनों की तरह हजारो लोग गौतम बुद्ध को देखने आये हुए थे . इसके अलावा गौतम बुद्ध के बहुत से भक्त , साधू – संत और यात्री भी भीड़ में शामिल थे।

अपने शिष्यों की तरह ही गौतम बुद्ध ने भी गेरुए रंग के कपड़े पहने हुए थे पर इसके बावजूद सिद्धार्थ उन्हें पहचान गया . उनके चेहरे पर अद्भुत तेज़ था . उनकी भाव – भंगिमा एकदम शांत थी . उन्हें देखकर एक पूर्णता और पवित्रता का एहसास होता था . बुद्ध ने उपदेश देना शुरू किया , लोग मंत्रमुग्ध होकर चुपचाप उनकी बाते सुनने लगे मानो उन पर बुद्ध ने मन्त्र पढ़कर कोई जादू कर दिया हो . बुद्ध ने उन्हें दुःख की परिभाषा समझाई और ये भी बताया कि कैसे अपने ज्ञान के द्वारा सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है . उन्होंने अपने भक्तो को बौध धर्म के चार प्रमुख सिद्धांत और अष्टांग मार्ग की भी शिक्षा दी . बगीचे में मौजूद लोगो की भीड़ बड़ी शांति के साथ बुद्ध के उपदेशों को ग्रहण कर रही थी . बुद्ध के उपदेश से उन्हें बहुत कुछ सीखने मिला था।

गौतम बुद्ध का उपदेश जैसे ही ख़त्म हुआ , गोविन्द ने सिद्धार्थ की तरफ देखा . उसने घोषणा कर दी कि वो मोक्ष प्राप्त करने के लिए गौतम बुद्ध के बताये रास्ते पर चलेगा पर सिद्धार्थ उस मार्ग को स्वीकार नही करना चाहता था . गोविन्द ने उसे मनाने की बड़ी कोशिश की , उसने अपने दोस्त से कहा कि उसे अपने फैसले पर विचार करना चाहिए , क्या बुद्ध के उपदेश उसे प्रेरणा नही देते ?

सिद्धार्थ ने कहा कि उसे बुद्ध के उपदेश अच्छे लगे पर वो उनसे प्रभावित नही हुआ इसलिए वो मोक्ष पाने के लिए अलग – अलग तीर्थ स्थानों पर जाकर तपस्या करेगा . और आखिरकार इतने सालो तक साथ रहने के बाद अंत में दोनों दोस्तों के रास्ते अलग हो गए।

सिद्धार्थ धुन का पक्का था . वो किसी और के बताये रास्ते पर चलने के बजाए खुद के अनुभवो से मोक्ष पाना चाहता था . हां , ये सच था कि सिद्धार्थ ने गौतम बुद्ध के उपदेश से काफी कुछ सीखा , पर उसे उपदेशो पर ज्यादा विशवास नही था . वो खुद के बल पर मोक्ष के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहता था . जाग्रति Awakening गौतम बुद्ध और गोविन्द के वहां से जाने के बाद सिद्धार्थ काफी देर तक सोचता रहा . वो सोच रहा था कि अब उसे आगे क्या करना चाहिए . वो अभी भी दुखी था।

बुद्ध के उपदेश भी उसके मन की अशांति को दूर नही कर पाए थे ? आखिर वो जीवन से क्या चाहता था ? उसे किस चीज़ की तलाश थी ? सिद्धार्थ बहुत देर तक अपने ख्यालों में डूबा रहा और जब वो चलने को तैयार हुआ तो अचानक जैसे उसे उसके सवालों का जवाब मिला . वो तो खुद को ही ढूंढ रहा था . दूसरो से ज्ञान हासिल करने की कोशिश में वो खुद को कहीं खो चुका था।

इतने सालो से वो दूसरों से सीखने की कोशिश कर रहा था जबकि वो खुद से ही काफी कुछ सीख सकता था , वो खुद अपना गुरु और खुद ही शिष्य था . और ठीक उसी पल में सिद्धार्थ को उस सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसकी तलाश में वो इतने बरसो से भटक रहा था।

कमला

सिद्धार्थ अब एक नए नजरिये से दुनिया देख रहा था . एक बार फिर वो अपने ख्यालों में डूब गया . दिन पर दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे . वो अपने आस – पास की हर चीज़ को बड़े गौर से देखता और हैरान होता . उसे हैरानी होती कि प्रकृति कितनी महान और विशाल है।

सिद्धार्थ खुद बड़ा भाग्यशाली महसूस कर रहा था कि वो इन सब अनुभवो से होकर गुजर रहा है . अब वो जंगल के बीच में नदी किनारे एक नाव वाले के साथ उसके झोपड़े में रहने लगा था . एक दिन उसने नाव वाले से कहा ” भाई , क्या तुम मुझे नदी के उस पार ले चलोगे ? पर मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ भी नही है ” . इस पर नाव वाले ने कहा “ मैं तुम्हे नदी के पार ले चलूँगा , तुम्हे परेशान होने की जरूरत नही है।

इस नदी को देखो , इसका पानी लगातार बहता रहता है , हर चीज़ लौटकर वापस जरूर आती है और मुझे यकीन है कि तुम भी एक दिन नदी की तरह वापस लौट आओगे ” . सिद्धार्थ चलते – चलते एक शहर में पहुंचा . वहाँ उसे एक खूबसूरत लडकी मिली जिसका नाम कमला था . उसकी खूबसूरती ने सिद्धार्थ पर जादू सा कर दिया . कमला खूबसूरती और नजाकत की मूर्ती थी . सिद्धार्थ को कभी किसी से प्रेम नही हुआ था . वो प्यार के बारे में कुछ भी नही जानता था इसलिए उसने कमला से मिन्नत करते हुए कहा कि वो उसे प्रेम के बारे में सब कुछ बताये . नौजवान सिद्धार्थ के साहस और सच्चाई से प्रभावित होकर कमला ने उसकी बात मान ली।

हालाँकि सिद्धार्थ का जीवन अब पहले की तरह तपस्वीयों जैसा नहीं रहा . अब वो एक अमीर व्यापारी कामास्वामी घर में रहने लगा और जीवन की हर सुख – सुविधा का आनंद लेने लगा था . धीरे – धीरे सिद्धार्थ ने भी खूब धन – दौलत कमाया . अब वो कीमती कपड़े और गहने पहनने लगा था . उसने कामास्वामी का बिजनेस संभाल लिया था और कमला से मिलने जाया करता था।

उसने कमला को कई सारे कीमती तोहफे दिए . कमला ने उसे प्रेम करना सिखा दिया था . कई सालो तक ये सिलसिला चलता रहा . सिद्धार्थ ऐशो – आराम की जिंदगी जी रहा था . उसे अब किसी चीज़ की फ़िक्र नही थी पर एक रात उसे अचानक सब कुछ याद आ गया कि वो कौन है और उसने किस मकसद से घर छोड़ा था . उसे अपनी पिछली जिंदगी याद आने लगी . कीमती कपड़ो , गहनों और ऐशो- -आराम में डूब कर उसने आत्मचिन्तन करना ही छोड़ दिया था।

उसे ऐसा लगा जैसे वो धीरे – धीरे मौत की तरफ बढ़ रहा है . वो सोचने लगा कि मोक्ष प्राप्त करने की अपनी भूख से उसे कब छुटकारा मिलेगा ? सांसारिक जीवन से तंग आकर वो एक आम के पेड़ के नीचे बैठकर अपने जीवन के बारे में सोचने लगा . उसके बाल सफ़ेद हो चुके थे , उसे एहसास हुआ । कि उसने जिंदगी का कीमती समय यूं ही बर्बाद कर दिया था . बैठे – बैठे उसे गोविन्द याद आया , उसे गौतम बुद्ध याद आये और तभी उसके चेहरे पर मुस्कान उभर आयी।

आधी रात के वक्त सिद्धार्थ अपना घर , अपना शहर छोडकर एक बार फिर एक नई यात्रा पर निकल पड़ा . उसके जाने के बाद कमला ने उसे ढूँढने की बहुत कोशिश की पर वो ये भी जानती थी कि सिद्दार्थ का जन्म ही मोक्ष पाने के लिए हुआ है इसलिए वो कभी सांसारिक सुखो में बंध कर नही रह सकता . बड़े भारी मन से कमला ने अपने घर के दरवाजे लोगो के लिए बंद कर दिए . सिद्धार्थ के जाने के बाद अब वो किसी से मिलना नहीं चाहती थी।

नदी के किनारे

सिद्धार्थ एक बार फिर उसी जंगल में लौटा जहाँ उसे वो नाव वाला मिला था . वो अभी भी पहले जैसा ही जवान और सुंदर था . पर सिद्धार्थ बूढा हो चुका था . उसे खुद पर बड़ी शर्म आई कि उसने जीवन का बहुत सा कीमती समय भोग – विलास में बर्बाद कर दिया . वो निराशा के सागर में डूब गया . बेहद निराश और दुखी होकर उसने नदी के साफ़ पानी में झाँका . उसके अंदर पानी में डूब कर जान देने की ईच्छा उभरने लगी . ऐसे जिंदा रहने का फायदा ही क्या था ? उसे अपनी जिंदगी से नफरत हो गई थी।

उसने पानी में छलांग मारने के लिए पैर आगे बढाए ही थे कि तभी उसके अंदर से एक आवाज़ आई जिसने उसे आत्महत्या करने से रोक लिया . ये उसकी अंतरात्मा की आवाज़ थी जिसने सिर्फ एक शब्द कहा था पर इतना ही सिद्धार्थ के लिए काफी था . उसे अपने अंदर फिर से एक नए जोश का एहसास हुआ . उसके मन में उमड़ते हुए दुःख और चिंता के बादल छंट गए।

उसका मन अब पानी की तरह एकदम साफ हो गया था . वो एक शब्द जो उसके अंदर से आया था वो था ” ॐ ” . यही वो शब्द था जिसे वो अपने घर में ध्यान लगाते समय जपा करता था . ॐ का मतलब है ‘ वो जो पूर्ण है ” . सिद्धार्थ की आत्मा ने उसे धिक्कारा . वो कितना मूर्ख था जो आत्महत्या करने जा रहा था . यही सोचते – सोचते वो गहरी नींद में चला गया और जब उसकी आँख खुली तो उसके सामने एक नई दुनिया थी उसके विचार अब बदल चुके थे तो उसे दुनिया भी बदली हुई नजर आ रही थी।

सिद्धार्थ लगातार ॐ का जाप कर रहा था . ॐ का उच्चारण उसके मन को शान्ति दे रहा था . नदी के किनारे खड़े होकर वो आज कई बरसो बाद फिर से आत्म मंथन कर रहा था . वो बूढा था पर उसका मन बच्चो की तरह मासूम और साफ़ था . वो अपने आप में कहीं गुम हो गया . इतने सालो की ध्यान – साधना , तपस्वीयों के साथ रहकर जो कुछ उसने सीखा था , वो सब कुछ भूल गया . सिद्धार्थ के मन में अब कोई भी ईच्छा बाकि नही रही , और ना ही वो अपने इंद्रीयों का गुलाम था।

उसे लोभ – मोह – माया से अब कोई डर नही था . उसने बहुत कष्ट झेले थे , बहुत दुःख सहा था , दर – दर भटका था पर अब और नही . अब उसके दुखो का अंत हो चुका था . उसके होंठो पर ॐ का जाप था और उसका मन एकदम पवित्र था . सिद्धार्थ के होठो पर अब बच्चो जैसी मासूम और प्यारी मुस्कुराहट थी . हर चीज़ उसके खिलाफ जा रही थी . सिद्धार्थ नीचे की तरफ तेज़ी से गिर रहा था पर वो रोने के बजाये अपनी हालत पर हंस रहा था . उसने नदी को देखा , नदी भी तो नीचे की तरफ बहती जा रही थी . पहाड़ो से उतरकर नीचे मैदानी ईलाको में जाकर नदी कई धाराओं में बंट जाती थी , और शहर में रहने वालो को पानी मुहैय्या कराती थी।

पर नदी नीचे की तरफ जाते हुए उदास नही थी बल्कि वो अल्हड चाल से बलखाती हुई बह रही थी . सिद्धार्थ नदी को देखकर मुस्कुरा दिया . उसे लगा जैसे उसके अंदर आनंद का झरना फूट रहा है . वो अगर कमला के प्यार मे डूबा रहता और कामास्वामी के साथ मिलकर पैसा कमा रहा होता तो शायद उसे कभी इस आनदं का अनुभव नही होता।

अगर उसने दुख का अनुभव नही किया होता तो उसे इस सुख की भी अनुभूति नही हो पाती . नदी ही अब उसकी सच्ची साथी थी जिसके किनारे बैठकर वो आत्म मंथन कर सकता था . बड़े – बड़े ज्ञानियों का ज्ञान भी उसे संतुष्ट नही कर पाया था . तपस्वीयों की संगत में भी उसके मन को चैन नही मिला था . वो इतने सालो से खुद को ही ढूंढ रहा था और खुद ही इस बात से अनजान था . वो कभी समझ ही नहीं पाया कि मोक्ष का द्वार अपने अंदर से ही खुलता है।

नाव वाला

बीस साल से भी ज्यादा का वक्त गुजर गया था . एक दिन सिद्धार्थ दोबारा नाव वाले से मिला . वो नाव वाला जिसका नाम वासुदेव था , उसे मुश्किल से पहचान पाया . सिद्धार्थ ने उसे अपनी आपबीती सुनाई . दोनों पुराने बिछुड़े हुए दोस्तों की तरह गले मिले . फिर सिद्धार्थ ने वासुदेव को नदी किनारे वाली बात भी बताई जब वो आत्महत्या करने जा रहा था।

वासुदेव ने कुछ सोचते हुए सिर हिलाया . वो सिद्धार्थ के जीवन की कहानी समझ चुका था . नदी उन्ही से बात करती है जिनका जीवन उसे कीमती लगता है और नदी ने सिद्धार्थ को चुना था , तो वो उसे कैसे जाने देती . इस तरह एक बार फिर सिद्धार्थ नाव वाले के साथ उसकी झोपडी में रहने लगा . इस दौरान उसने नाव चलाना भी सीख लिया।

जब भी सिद्धार्थ को काम से फुसर्त मिलती वो नदी की आवाज़ सुनने के लिए उसके किनारे बैठ जाता . वो नदी से दिल खोलकर बाते करता और उसकी बाते भी उतने ही ध्यान से सुनता . नदी से सिद्धार्थ ने सीखा कि जीवन लगातार चलने का नाम है।

नदी की तरह ही जीवन की धारा भी आगे बढती रहती है और गुजरा वक्त कभी लौटकर नहीं आता . नदी हर जगह मौजूद है . नदी सागर से मिलती है और सागर बादल बनकर फिर से पहाड़ो पर बरसता है . नदी आज में बहती है . इसे बीते हुए कल की या आने वाले कल की कोई चिंता नही होती . ये सिर्फ आज को पहचानती है।

नदी की इसी सीख को सिद्धार्थ ने अपने जीवन में उतार लिया . उसका जीवन भी नदी जैसा ही तो था . उसे अपने बचपन की याद आई , फिर जवानी में जब वो तपस्वी बना , फिर बूढा सिद्धार्थ , वो सब अलग – अगल सिद्धार्थ नही थे जैसा कि उसे लगता था , वो एक ही इन्सान के कई रूप थे और ये सारे इंसान अलग – अलग ईच्छा बनकर उसके अंदर मौजूद थे।उसके लिए बीता हुआ कल या आने वाला कल कुछ भी मायने नही रखता था , मायने रखता था तो सिर्फ आज।

कई साल कमला से दूर रहने के बाद सिद्दार्थ जब दोबारा उससे मिला तो उसकी हालत देखकर उसका दिल दुःख से भरा आया . कमला उसकी आँखों के सामने मौत के मुंह में जा रही थी , पर मरने से पहले वो एक आखिरी बार गौतम बुद्ध के दर्शन कर उनका उपदेश सुनना चाहती थी . बुद्ध अपने जीवन के आखिरी दिन गुज़ार रहे थे।

कमला जो बुद्ध की प्रबल भक्त थी वो अपने और सिद्धार्थ के बेटे को लेकर बुद्ध के दर्शन के लिए निकल पड़ी . उसका ग्यारह साल का बेटा जिसका नाम उसने सिद्धार्थ के नाम पर ही रखा था , बचपन से ही ऐशो – आराम और लाड – प्यार में पला था . उसकी देखभाल और सेवा के लिए नौकर हर दम उसके खड़े रहते , ऐसे में उसे समझ नही आ रहा था कि क्यों उसकी माँ उसे लेकर एक कठिन यात्रा पर निकल पड़ी है . यात्रा के दौरान नदी के पास कमला को एक सांप ने काट लिया . ज़हर बड़ी तेज़ी से उसके शरीर में फैलने लगा।

नाविक वासुदेव ने कमला की दर्द भरी चीख सुनी तो वो दौड़ता हुआ आया और उसे उठाकर अपनी झोपडी में ले गया और तब वहां सिद्धार्थ और कमला आखिरी बार एक दूसरे से मिले . दर्द भरी आवाज़ में रुक – रुक कर कमला ने उसे बताया कि उसका और सिद्धार्थ का एक बेटा भी है . उन दोनों के लिए ये बड़े ही भावुक पल थे . और फिर कमला हमेशा के लिए उनसे दूर चली गई . छोटा सिद्धार्थ अपने पिता के साथ ही रहने लगा . पर सिद्धार्थ को अपने बेटे से प्यार नही था।

उसने एक अच्छा पिता बनने की पूरी कोशिश की पर सफल नही हुआ . उसके लिए घर – गृहस्थी का झंझट किसी कैद से कम नही था . पर आखिरकार उसका बेटा भी उसके साथ नहीं रह पाया . कुछ सालो बाद जब वो बड़ा हुआ तो शहर चला गया और फिर दोनों की कभी मुलाकात नही हुई . सिद्धार्थ को जीवन में अब तक सिर्फ दुःख का ही अनुभव हुआ था . दर्द से उसकी छाती फटी जा रही थी पर वो नदी की आवाज़ अब भी सुनता था।

फिर एक दिन अचानक उसे समझ में आया कि आखिर वो जीवन से चाहता क्या था . सिद्धार्थ को अपने जीवन का लक्ष्य समझ आ गया था और उसकी आत्मा इस लक्ष्य को पाने के लिए बेचैन हो उठी . उसका लक्ष्य था परमात्मा के साथ अपनी आत्मा को एकाकार करना . वो जान चुका था कि हमारी आत्मा इस ब्रह्मांड का ही अंश है . जब सारा संसार उसका अपना था तो फिर दुःख कैसा . कई सालों तक साथ रहते – रहते वासुदेव और सिद्धार्थ एक दूसरे के परम मित्र बन गए थे।

दोनों एक – दूसरे के सुख – दुःख के भागी थे . सिद्धार्थ उससे अपना हर अनुभव बांटा करता था और वासुदेव मुस्कुराते हुए चुपचाप सब कुछ सुनता रहता , सिद्धार्थ के लिए इतना ही काफी था . अपने अनुभव बांटने के लिए वासुदेव से अच्छा दोस्त उसे मिल ही नहीं सकता था . दोनों साथ में नदी की आवाज़ सुना करते थे . नदी उनसे बाते करती थी।

सिद्धार्थ का चेहरा भी नदी के साफ़ पानी में नजर आता था . वो सब लोग जो सिद्धार्थ के करीबी और अपने थे , जिनसे वो प्यार करता था , उन सब लोगो की तस्वीरे नदी के पानी में उभर आई थी , पर जैसे ही उभरी वैसे ही तुरंत गायब भी हो गई . उन सबके चेहरे नदी के बहते पानी में जैसे घुल गए थे . नदी की आवाज़ भी बदली हुई लग रही थी . उसकी आवाज़ में एक मिठास और ख़ुशी झलक रही थी . नदी में उभरती तस्वीरे और पानी का शोर मिलकर एकाकार हो गया और अंत में एक आवाज़ साफ़ रूप में उभरी ” ॐ ” . सिद्धार्थ ने अपने जीवन का लक्ष्य पा लिया था , आखिरकार उसे मोक्ष मिल ही गया।

उसने नदी की तरह सब कुछ अपने अंदर बहने दिया . नदी हर हाल में बहती रहती है , जीवन भी आगे बढ़ने का नाम है . नदी कभी नही रूकती क्योंकि वो एकाकार का ही एक अंश है . कोई दुःख कोई परेशानी उसका रास्ता नहीं रोक सकती . उसकी पहचान यही है कि वो लगातार बहती रहे।

गोविंद

सिद्धार्थ के शहर छोड़ने के बाद कमला ने अपना बगीचा गौतम बुद्ध और उनके शिष्यों को दान कर दिया . यही वो समय था जब गोविन्द ने जंगल में जाने का फैसला किया . उसने खबर सुनी थी कि जंगल एक ज्ञानी नाव वाला रहता है . गोविन्द के मन में उसके उपदेश सुनने की बड़ी ईच्छा हुई . आखिरकार गोविन्द और सिद्धार्थ इतने सालो बाद एक दूसरे से मिले . दोनों के बूढ़े और झुरींदार चेहरों से ख़ुशी झलक रही थी . गोविन्द ने अपने प्यारे दोस्त से ज्ञान का उपदेश देने की प्रार्थना की . सिद्धार्थ ने कहा कि ” ज्ञान की खोज में भटकना बहुत मुश्किल काम है।

इन्सान उसे पाने के लिए इतना आत्म केंद्रित हो जाता है कि उसे वो बाकि चीज़े नजर ही नही आती जो उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा सकती है . ” गोविन्द की समझ में कुछ नही आया . उसके मन में अभी भी कई सवाल थे . तो उसने सिद्धार्थ से पूछा कि उसे ज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई . पर सिद्धार्थ ने उसे बताने से मना कर दिया . इतने सालो में आखिर उसने यही तो सीखा था . किसी को शिक्षा दी जा सकती है पर ज्ञान इन्सान खुद अपने अनुभवो से हासिल करता है और किसी और का ज्ञान किसी दूसरे के कभी काम नही आता।

सिद्धार्थ ने संसार में रहते हुए एक सन्यासी का जीवन जीना सीख लिया था . उसने अपने जीवन में वो सब कुछ अनुभव किया। जिसने उसे एक ज्ञानी बना दिया था और वो समझ चुका था कि मोक्ष की तलाश बाहर नहीं अपने अंदर करो।

निष्कर्ष

इस किताब में हमने पढ़ा कि किस तरह सिद्धार्थ ने मोक्ष की खोज में भटकते हुए अलग – अलग अनुभवो से गुजरकर अंत में मोक्ष प्राप्त किया और साथ ही हमने ये भी सीखा कि सिद्दार्थ की तरह अगर हमे भी जिंदगी कुछ हासिल करना है तो हमे पढ़े एक बहादुर इन्सान बनना होगा।

सिद्धार्थ इस बात को समझ गया था कि सिर्फ अपने अनुभवो से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है क्योंकि ज्ञान ना तो सिखाया जा सकता है और ना ही हमे किसी और के अनुभव से प्राप्त हो सकता है . ज्ञान खुद के अनुभवो से ही मिलता है . कई सालो तक दुःख – दर्द , लालच , काम और क्रोध का अनुभव करने के बाद सिद्धार्थ को मोक्ष मिला।

एक नदी की तरह ही सिद्धार्थ ने अपनी भावनाओं को बहने दिया , उन्हें रोका नही . नदी की राह में अगर कोई पत्थर भी आ जाए तो भी नदी कभी रूकती नहीं है , वो उस पत्थर के चारो ओर से बहकर आगे निकल जाती है . सिद्धार्थ ने अपने भक्तो को नॉलेज और विज़डम यानी ज्ञान और जानकारी के बीच का फ़र्क समझाया . नॉलेज एक इंसान से दूसरे को बांटी जा सकती है पर ज्ञान ऐसी चीज़ है जिसे पाने के लिए हमे खुद ही मेहनत करनी पड़ती है और ये हमे सिर्फ अपने अनुभवो से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। क्योंकि ज्ञान ना तो सिखाया जा सकता है और ना ही हमे किसी और के अनुभव से प्राप्त हो सकता है।

ज्ञान खुद के अनुभवो से ही मिलता है . कई सालो तक दुःख – दर्द , लालच , काम और क्रोध का अनुभव करने के बाद सिद्धार्थ को मोक्ष मिला . एक नदी की तरह ही सिद्धार्थ ने अपनी भावनाओं को बहने दिया , उन्हें रोका नही . नदी की राह में अगर कोई पत्थर भी आ जाए तो भी नदी कभी रूकती नहीं है , वो उस पत्थर के चारो ओर से बहकर आगे निकल जाती है।

सिद्धार्थ ने अपने भक्तो को नॉलेज और विज़डम यानी ज्ञान और जानकारी के बीच का फ़र्क समझाया . नॉलेज एक इंसान से दूसरे को बांटी जा सकती है पर ज्ञान ऐसी चीज़ है जिसे पाने के लिए हमे खुद ही मेहनत करनी पड़ती है और ये हमे सिर्फ अपने अनुभवो से ही मिलती है . ज्ञान से ही मोक्ष मिलता है और इसे पाने के लिए हर इंसान को अपना रास्ता खुद बनाना पड़ता है। अकेले चलने से डरिये मत।

इस दुनिया में हर इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है। आप किसी से मदद की उम्मीद तो रख सकते है पर आखिर में अपना भाग्य हमे खुद बनाना पड़ता है . इसलिए अपना रास्ता खुद बनाइए और हार के डर से कभी पीछे मत हटिए . आगे बढ़ते रहिये . आप जहाँ अपना मन लाग्येंगे वही आपकी मंजिल होगी।

This Post Has One Comment

  1. उमेश

    धन्यवाद श्रीमान जी बहुत ही अच्छा लिखा है आपने

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