ऑथर के बारे में (About Author)
सुज़न जेफ़र्स (susan Jeffers) एक साइकोलोजिस्ट और ऑथर हैं . उन्होंने एक पत्नी और माँ की ड्यूटी को बखूबी निभाते हुए अपनीडॉक्टरेट की डिग्री हासिल की . ” Feel the Fear ” उनकी अब तक की सबसे popular बुक रही है .2012 में कैंसर की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी . लेकिनअंत तक वो एक्टिव बनी रहीं , उन्होंने कई किताबें लिखीं और लेक्चर दिए .
Table of Contents
परिचय:-
आपको किस चीज़ से सबसे ज़्यादा डर लगता है ? ऐसी कौन सी चीज़ है जो आपको अपने सपनों को पूरा करने से और उन चीज़ों को हासिल करने से दूर कर रही है जो आप करना चाहते हैं ? क्या आपको लगता है कि आप एक जगह अटक गए हैं जहां से आप एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते ? अगर हाँ , तो मैं आपको बता दूं कि बस एक शब्द है जो आप पर इतना बोझ डालता जा रहा है.ये हमारे साथ हर जगह मौजूद होताहै ,
जब तक हम उसे गहराई से महसूस नहीं करते तब तक इसबात को एक्सेप्ट नहीं करना चाहते कि वो मौजूद है . और वो खतरनाक शब्द है FEAR यानी ” डर ” . इस बुक में आप सीखेंगे कि डर की पहचान कैसे करें और ये हमारी जिंदगी पर क्या क्या असर डालता है . आप डर का सामना करना और उसे कंट्रोल करना भी सीखेंगे.डर के कारण जो चीजें आपसे छूट रही हैं आप उसे भी एक्सपीरियंस करना सीख जाएँगे . इस बुक के अंत तक आप ख़ुद को पर्पस , मीनिंग और प्यार के साथ एक अलग अंदाज़ में देखने लगेंगे . अगर आप अपनी जिंदगी बदलने के लिए तैयार हैं तो हमारे साथ अंत तक जुड़े रहें और आप देखेंगे कि जिन चीज़ों से आपको सबसे ज़्यादा डर लगता है उन्हें एक्सेप्ट करने से कितना फ़र्क पड़ता है . .
आप किससे डरते हैं और क्यों ? :-
डर ही वो कारण है जिसकी वजह से हम उस ख़ुशी को एक्सपीरियंस नहीं कर पाते जिसकी तलाश में हम लगे रहते हैं . जिंदगी अपनी प्लेट में हमें क्या कुछ सर्व करती है उस पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं है लेकिन अगर वो कोई दर्दनाक एक्सपीरियंस भी हुआ तो हम उसे सहने लायक तो बना ही सकते हैं.तो आइए पहले डर को समझते हैं . डर के तीन लेवल होते हैं – लेवल 1 वो चीजें हैं जो सच में होती हैं और जिसके लिए एक्शन लेने की ज़रुरत है . लेवल 2 में ईगो जैसे इमोशन शामिल होते हैं जैसे रिजेक्शन , फेलियर , इमेज खराब होने का डर और असहाय महसूस करना . लेवल 3 है सबसे बड़ा डर जिसमें ये सोच आ जाती है कि ” मैंइसे हैंडल नहीं कर सकता ” .
आप फ्यूचर के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते इसलिए आपको कभी भी बिना कोशिश किए नहीं कहना चाहिए कि ” मैं इस प्रॉब्लम को हैंडल नहीं कर सकता ” . ख़ुद पर विश्वास करने से और अपने डर से भागने के बजाय उसका सामना करने से आप किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं.आइए एक कहानी से इसे समझते हैं . एक आदमी अपने बचपन के दिनों को याद कर रहा था.रह रह कर उसे बस अपनी माँ का ख़याल आने लगा.जब भी वो घर से कहीं बाहर जाता तो उसकी माँ कहती , ” बेटा , अपना ध्यान रखना ” . वो आदमी सोचने लगा , इन सिंपल से शब्दों में दो message छुपे हैं ,
पहला कि ” ये दुनिया सेफ़ नहीं , डेंजरस है ” और दूसरा , ” तुम इसे हैंडल नहीं कर पाओगे ” . लेकिन उस वक़्त वो आदमी एक नादान बच्चा होने के कारण कभी इसका सही मीनिंग समझ ही नहीं पाया . उसकी माँ सिर्फ़ इस बात से चिंतित थी कि अगर उसके बेटे को कुछ हो जाता है तो वो उसकी रक्षा करने के लिए वहाँ मौजूद नहीं होगी . इसी तरह सालों बीत गए , बच्चा अब बड़ा हो गया था लेकिन अब भी बाहर जाते समय उसकी माँ उसे कहती ” बेटा , सावधान रहना , अपना ध्यान रखना ” . बड़े और mature होने के बाद जाकर वो अपनी माँ की बातों की गहराई को समझ पाया . असल में वो ये कहना चाहती थी कि अगर उसके साथ कुछ बुरा हो जाएगा तो वो ख़ुद को संभाल नहीं पाएगी और टूट जाएगी .
एक दिन , उसकी माँ बहुत बीमर हो गई . उन्हें तुरंत ICU में एडमिट करवाया गया . एक मेजर ऑपरेशन के बाद जब वो आदमी अपनी माँ से मिलने गया तो उनके नाक और गले में पाइप लगी हुई थी . बिना ये जाने कि वो सच में उसे सुन पा रही है या नहीं , वो झुका और अपनी माँ के कान में धीरे से कहा ” मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ माँ . मुझे छोटा सा काम है और मैं अभी वापस आता हूँ ” . दरवाज़े के पास पहुँचने पर उसे एक धीमी आवाज़ सुनाई दी ” अपना ध्यान रखना बेटा ” . ये सुनकर उसका दिल भर आया और उसकी आँखों से आखों छलकने लगे . वो सोचने लगा ” मैं तो शायद गिन भी नहीं सकता कि इतने सालों में माँ ने ये बात कितनी बार कही है . “
क्या आप डर को दूर नहीं कर सकते ?
एक सच जो कभी बदलने वाला नहीं वो ये है कि ये जो हमारा डर है ना वो कभी भी पूरा ख़त्म होने वाला नहीं है लेकिन वो आपकी जिंदगी पर कितना असर डालता है आप उसे ज़रूर कंट्रोल कर सकते हैं.डर को शांत और काबू में किया जा सकता है लेकिन किसी भी नई सिचुएशन में वो दोबारा लौटकर आ जाता है.ये एक साईकल की तरह है जो फ़िर से शुरू हो जाएगा जब तक आपको इसकी आदत नहीं हो जाती . जो लोग एंटरटेनमेंट और पब्लिक सेक्टर में काम करते हैं वो भी इस डर को एक्सपीरियंस करते हैं.चाहे आप कोई भी हों , हम सभी इस डर को महसूस करते हैं . इसलिए वो चीजें करना जो आपके कम्फर्ट ज़ोन से बाहर हों , कुछ हद तक आपके डर को कम कर सकते हैं .
एक औरत थी जिसका हाल ही में तलाक हुआ था . तलाक होने से पहले , वो हर चीज़ के लिए अपने पति पर डिपेंडेंट थी . तलाक के बाद , उस औरत के पास नई चीज़ों को सीखने के अलावा कोई चारा नहीं था.उसे काम करने का कोई एक्सपीरियंस नहीं था और ना ही उसे बाहर निकलकर कभी दुनिया का सामना करने की ज़रुरत पड़ी थी.वो बहुत डरी हुई थी लेकिन उसने चीज़ों को बीच में छोड़ा नहीं.वो नई चीजें सीखने लगी.इस वजह से धीरे – धीरे उसमें सेल्फ़ – कांफिडेंस डेवलप होने लगा . हर दिन , उसने कुछ नया सीखा . अपने दम पर प्रॉब्लम को हैंडल करने की एबिलिटी ने उसके डर को कम करना शुरू कर दिया था .
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लेकिन जब भी वो कुछ नया एक्सपीरियंस करती तो वो डर लौट आता था.लेकिन उसकी खासियत यही थी कि वो अपने डर से डरकर पीछे नहीं हटी क्योंकि वो जानती थी किजब तक वो भागना बंद नहीं करेगी तब तक ये डर उसे भगाना बंद नहीं करेगा . तो उसने सोचा कि अगर किसी को भागना ही है तो क्यों ना डर को भगाया जाए . इसी तरह एक बार एक मेयर थे जो tap डांस सीखना चाहते थे .
ये एक पब्लिक इवेंट के लिए था जिसमें उन्हें एक ब्रॉडवे कास्ट के साथ परफॉर्म करना था . यूं तो मेयर को हज़ारों लोगों के सामने स्पीच देने की आदत थी और उन्हें ऐसे डिसिशन भी लेने पड़ते थे जिसका असर हज़ारों लोगों पर पड़ता है . लेकिन डांस के मामले में वो ज़रा अनाड़ी थे और उन्हें tap डांस सीखने में डर लग रहा था . ये उनके लिए एक बिलकुल नया एक्सपीरियंस था लेकिन उन्होंने इसे ट्राय करने का फैसला किया . उन्होंने खुद को याद दिलाया कि नई चीजें सीखते वक़्त डर लगना बिलकुल नेचुरल है . हिम्मत कर उन्होंने डांस सीखना शुरू किया .
कई दिनों तक प्रैक्टिस करने के बाद , मेयर का डर धीरे – धीरे कम होने लगा और उनमें कांफिडेंस आने गया . उन्होंने सोचा ” ये थोड़ा मुश्किल ज़रूर है लेकिन मैं इसे संभाल लूंगा . ” एक एक कर दिन बीत रहे थे और आखिर इवेंट का दिन आया.मेयर ने परफेक्ट डांस करने के बारे में नहीं सोचा , उन्होंने बस दिल खोलकर डांस किया.लोगों को उनका परफॉरमेंस बेहद पसंद आया और सभी ने उनके लिए खूब तालियाँ बजाई |
सच तो ये है कि हम सभी लाइफ के किसी ना किसी मोड़ पर डर को ज़रूर महसूस करते हैं.चाहे आप कोई भी हों , अपने डर को एक्सेप्ट कर आप उसे हरा सकते है।
दर्द से ताकत तक :-
लाइफ में रिस्क लेना आपको और भी ज़्यादा पावरफुल बना देता है.हर स्टेप के साथ कांफिडेंस हासिल करना आपको डर के मौजूद होने के बावजूद दुनिया को एक्सपीरियंस करने का मौका देता है . हम सब के अंदर पॉवर होती है और किसी भी सिचुएशन में जब हम डरे हुए हों तो हम ख़ुद को कांफिडेंस दिलाने के लिए उस पॉवर को यूज़ कर सकते हैं . पॉवर का मतलब लोगों पर रौब जमाना या उन्हें कंट्रोल करना नहीं होता . हम जिस पॉवर की बात कर रहे हैं वो आपकी ख़ुशी को कंट्रोल करने की एबिलिटी और आप जिस तरह अपनी लाइफ जीते हैं उस बारे में है.आइए एक कहानी से इसे समझते हैं .
एक औरत को पता चला कि उसके पति को कैंसर हो गया था . इस खबर ने उन दोनों की जिंदगी बदलकर रख दी . वो औरत इतना डर गई थी कि उसने सिचुएशन को संभालने की अपनी पॉवर ही खो दी . लेकिन जैसे -जैसे दिन बीतते गए उसने नई चीजें सीखीं . अब वो इस सिचुएशन को एक नए नज़रिए से देखने लगी . उसने महसूस किया कि ऐसे कई लोग हैं जो उसकी और उसके पति की परवाह करते हैं . हर दिन लड़ने झगड़ने के बावजूद उनका एक दूसरे के लिए प्यार बढ़ने लगा था . उस औरत ने गुस्से और कड़वाहट की भावना को ख़ुद से दूर कर दिया .
वो अब स्ट्रेस महसूस नहीं करती थी . किसी भी चैलेंज का सामना करने के लिए उसमें कांफिडेंस भरने लगा था . एक – एक करके दोनों पति पत्नी ने अपने अंदर की हर नेगेटिव फीलिंग से छुटकारा पाया और अपने अंदर की पॉवर को खोजा . समय के साथ , उस आदमी की सेहत बेहतर होने लगी . इतना ही नहीं , अब वो दोनों साथ मिलकर दूसरे कैंसर पेशेंट्स की मदद करने में लग गए . अंत में , आपका विलपॉवर आपकी कमज़ोरी को हरा देता है . आप जितना ज़्यादा प्रॉब्लम का सामना करेंगे , आप उतने ज़्यादा पावरफुल हो जाते हैं |
आप इसे चाहते हैं या नहीं … यह आपका है :-
हम में से कई लोग बड़ा होना ही नहीं चाहते.अपने एक्शन के लिए वो हमेशा दूसरों को दोष देने में लगे रहते हैं . अपने लाइफ की ज़िम्मेदारी ख़ुद लें . एक असहाय और विक्टिम बनकर अपनी प्रॉब्लम के लिए दूसरों को दोष ना दें.इसका कंट्रोल अपने हाथों में लें क्योंकि अपने हर एक्शन और उसके रिजल्ट के लिए सिर्फ़ आप ज़िम्मेदार होते हैं.याद रखें कि आज आप जो डिसिशन लेते हैं वो आपका फ्यूचर डिसाइड करता है .
जब आप एक विक्टिम की सोच नहीं रखते तब डर आप पर नहीं बल्कि आप डर पर हावी होने लगते हैं . ज़िम्मेदारी लेने का एक और मतलब अपने मन में चल रहे हज़ारों थॉट्स को हैंडल करना भी है.ये थॉट्स आपके मन को negativity से भर कर आपको ख़ुद पर डाउट करने के लिए मजबूर करते हैं . इस बात को समझना कि आप लाइफ में क्या करना चाहते हैं और उसे अचीव करने के लिए एक्शन लेना , ये भी ज़िम्मेदारी लेने का ही एक हिस्सा है.आप अपने गोल की ओर बढ़ने के लिए हर दिन छोटे – छोटे स्टेप्स ले सकते हैं.आइए इसे एक कहानी से समझते हैं .
एडवर्ड एक अमीर आदमी था जिसके पास दुनिया की हर चीज़ थी लेकिन फिर भी हर दिन वो लगातार चिंता में डूबा रहता था . वोइतना परेशान रहने लगा कि लोगों ने उसे साइकेट्रिस्ट से मिलने की सलाह दी लेकिन एडवर्ड ने डॉक्टर के पास जाने से इंकार कर दिया . उसका कहना था कि उसे नहीं बल्कि उसकी जिंदगी में जो लोग थे उन्हें बदलने की ज़रुरत थी.वो हमेशा शिकायत करता ” काश मेरी वाइफ मुझे ज़्यादा समझती , काश मेरा बॉस मुझ पर डिपेंडेंट नहीं होता तो मैं चीजें बिलकुल नार्मल होती और मैं इतना परेशान नहीं होता . ” एडवर्ड को यकीन था कि उसे किसी मदद की ज़रुरत नहीं है . दूसरे लोग गलत हैं , वो नहीं ,
एडवर्ड एक ऐसे आदमी का परफेक्ट एग्जाम्पल है जो किसी भी चीज़ की ज़िम्मेदारी नहीं लेता , वो दूसरों को दोष देकर खुद को एक विक्टिम समझता है.अब आइए टोनी की बात करते टोनी के पास एक अच्छी ख़ासी जॉब थी लेकिन वो ख़ुद को वहाँ फंसा हुआ समझता था.उसे अपनी जॉब छोड़कर बाकी के सभी काम ज़्यादा बेहतर लगते थे .
लेकिन टोनी ने एक बार भी नहीं सोचा कि आज ऐसे भी अनगिनत लोग हैं जिनके पास कोई जॉब नहीं है और उन्हें रोज़ काम की तलाश में ना जाने कितने धक्के खाने पड़ते हैं , तो क्या उसका शिकायत करना सही है ? शिकायत करने की बजाय टोनी को बस अपना बेस्ट परफॉर्म करना चाहिए.सिर्फ़ इस तरह वो अपनी जॉब में ज़्यादा satisfaction और ख़ुशी महसूस कर सकता है . अपनी जॉब में ज़्यादा पहचान और सैलरी डिमांड करने से पहले आपको ख़ुद से पूछना चाहिए कि क्या आप सच में उसके लायक हैं ? क्या आप पूरे कांफिडेंस के साथ कह सकते हैं कि आप एक एक्सीलेंट एम्प्लोई हैं ? अगर आप अपना व्यवहार बदलते हैं तो आप अपनी सिचुएशन को भी बदल सकते हैं .
इस बात को एक्सेप्ट करना कि आपको इम्प्रूव करने की ज़रुरत है , ये भी ज़िम्मेदारी लेने का एक तरीका है . इसे हम केविन की कहानी से सीख सकते हैं . केविन को अपनी वाइफ और परिवार से अलग हुए पांच साल हो गए थे.उसकी जिंदगी में एक लड़की आई थी जिसे वो पसंद करने लगा और उससे शादी करना चाहता था.लेकिन उसने अपनी वाइफ और बच्चों को बताया नहीं था कि वो तलाक चाहता था . एक दिन , उस लड़की ने केविन को धमकी दी कि वो उसे छोड़कर चली जाएगी.केविन इतना डिस्टर्ब हो गया कि उसने डॉक्टर से मिलने का फैसला किया . उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था , उसका मन नेगेटिव बातों से भरने लगा . वो तरह – तरह की बातें सोचने लगा जैसे अगर उसने अपनी वाइफ को तलाक दे दिया तो हो सकता है कि वो आत्महत्या कर ले या उसके बच्चे उससे नफ़रत करने लगेंगे और उससे रिश्ता तोड़ देंगे . थेरपिस्ट की मदद से केविन को एहसास हुआ कि वो ” let go ” करने से डर रहा था .
उसने महसूस किया कि उसके लिए उसकी वाइफ और बच्चे ही घर वापस आने का कारण थे , वो उसके अपने थे और वो इस कनेक्शन को खोने से डर रहा था.इसी डर की वजह से केविन फंसा हुआ फील करने लगा . लाइफ में , हम सभी को अपने लिए गए डिसिशन के नतीजे का सामना करना ही पड़ता है और ज़रूरी नहीं कि हर बार हमारा डिसिशन सही साबित हो . इसलिए इससे बचने का एक ही उपाय है कि अपनी गलतियों को एक्सेप्ट कर उससे सीखना चाहिए ताकि हम एक जगह अटके ना रहे और आगे बढ़ सकें .
पॉलीएना की सवारी फिर से :-
पॉलीएना एक ऐसी बच्ची की कहानी है जो हर सिचुएशन के पॉजिटिव पहलू को देखने में विश्वास करती है.पॉलीएना प्रिंसिप्ल की शुरुआत उसी से हुई थी . लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि हमेशा पॉजिटिव बने रहना नासमझी और अनरीयलिस्टिक है.क्या आप भी ऐसा ही मानते हैं ? सच तो ये है कि किसी नेगेटिव एक्सपीरियंस में भी कुछ ना कुछ पॉजिटिव ढूंढना ख़ुश रहने का उपाय है
जब आप अपने मन में चल रही नेगेटिव बातों को सुनना बंद कर देते हैं तब आप उन्हें जीतने लगते हैं.आप में अपने डर को कंट्रोल करने की पॉवर आ जाती है इस चैप्टर में आप सीखेंगे कि negativity को कैसे ख़त्म किया जाए.आपके मन में चल रही आवाजें आपको ऐसी सिचुएशन के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं जो असल में मौजूद होते ही नहीं.ये आपकी पॉवर को एक लिमिट में रोक कर आपको डर से भर देते हैं.पॉजिटिवथॉट के साथ इन आवाज़ों से लड़ने की कोशिश करें . ऐसा करने से आप दोबारा अपना कंट्रोल हासिल कर लेंगे।
जब हम किसी चीज़ को बार – बार करते हैं तो वो हमारी आदत बन जाती है और हम ऑटोमेटिकली उसे करना शुरू कर देते हैं.इसलिए इस पॉजिटिव थिंकिंग को एक हैबिट में बदलें . हाँ , ऐसा भी समय आएगा जब आप दुखी और हारा हुआ फील करेंगे लेकिन तब आपको दोबारा खड़े होकर लड़ना होगा.आइए इसे समझते हैं।
जीन और मैरी दोनों हाउसवाइफ थीं . हार्ट अटैक की वजह से दोनों के पतियों की अचानक मौत हो गई थी . उनमें से एक ने ख़ुद को संभाल लिया जबकि दूसरी ने डर के सामने हार मान ली.जीन को कई लोगों ने सालों तक सांत्वना और सहानुभूति दी.लेकिन एक पॉइंट आने पर सभी लोग उसके डिप्रेस्ड मूड से तंग आने लगे . कोई भी अब उसके साथ नहीं रहना चाहता था।
जीन सोचने लगी कि अकेले होने के बाद एक औरत को वो सपोर्ट नहीं मिलता जिसकी उसे ज़रुरत होती है . उसने ये भी मान लिया था कि उसे दोबारा कोई साथी नहीं मिलेगा और उसके पति के जाने के बाद वो कभी ख़ुश नहीं रह पाएगी.आखिर में यही जीन का सच बन गया क्योंकि उसका attitude और रवैया ही नेगेटिव था . उसके पति बेसिक ज़रूरतों को पूरा करने जितना ही पैसा उसके लिए छोड़ कर गए थे . जीन ने फैसला किया कि वो उस छोटी सी रकम से ही ख़ुद को सपोर्ट करेगी क्योंकि उसके जैसी हाउसवाइफ को जॉब मिलना नामुमकिन था.जीन कई जगह इंटरव्यू भी देने गई लेकिन उसमें ना कोई जोश था ना कोई उमंग , वो एक सुस्त इंसान लग रही थी जिस वजह से उसे कहीं भी हायर नहीं किया गया.जीन ने अपनी नेगेटिव थिंकिंग के कारण अपने लाइफ को दुःख से भर लिया था।
दूसरी ओर , मैरी का जिंदगी के प्रति एक अलग ही नज़रिया था . उसने पॉलीएना प्रिंसिप्ल को अप्लाई किया . उसके पति के गुज़रने के बाद वो कई दिन बेहद उदास और दुखी थी लेकिन उसके बाद उसने हिम्मत कर खुद को संभाला.मैरी एक ऐसी शख्स थी जो बुरे से बुरे हालात में भी कुछ ना कुछ अच्छा और पॉजिटिव ढूंढ ही लेती थी . उसके पति ने भी उसके लिए कोई बड़ी दौलत नहीं छोड़ी थी . लेकिन जीन से अलग उसने बाहर जाकर अपने दम पर पैसा कमाने का पक्का इरादा कर लिया था . उसे भी जॉब करने का कोई एक्सपीरियंस नहीं था लेकिन मैरी ने सोचा कि मुझे कहीं ना कहीं जॉब तो मिल ही जाएगी।
उसने चंदा इकट्ठा करने वाले एक इवेंट में अपनी मर्जी से नाम लिखवाया . हालांकि ये चैरिटी का कम था लेकिन उसे ये काम बहुत पसंद आया . इसलिए उसने एक चैरिटी आर्गेनाइजेशन में पैसा इकट्ठा करने वाले क्लर्क की पोजीशन के लिए अप्लाई किया और कमाल की बात तो तब हुई जब उसके पास सिलेक्शन की कॉल आई . मैरी बहुत खुश हुई . उसे इससे पहले कभी इतना अच्छा महसूस नहीं हुआ था . वो अब भी अपने पति को बहुत मिस करती थी लेकिन उसने इस बात को एक्सेप्ट कर लिया था कि जिंदगी कभी रूकती नहीं इसलिए आगे तो बढ़ना ही होगा .
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जिस तरह एक सिक्के के दो साइड होते हैं ठीक उसी तरह जिंदगी में हर सिचुएशन के दो पहलू होते हैं – एक पॉजिटिव और एक नेगेटिव.मैरी ने पॉजिटिव साइड को देखना चुना . इसलिए लोग उसके साथ रहना पसंद करते थे.सब उसकी तारीफ़ करते कि कैसे उसने अपने दुःख से बाहर निकलकर ख़ुद को एक ब्रेव और सक्सेसफुल इंसान बना लिया था.मैरी ने एक दुखद घटना में भी हिम्मत नहीं हारी और उसे एक मौके के रूप में देख कर आगे की ओर कदम बढ़ाया . अगर मैरी ने अपने पति को खोया नहीं होता तो शायद वो कभी नहीं जान पाती कि वो अपने दम पर कितना कुछ अचीव कर सकती थी |
जब “वे” नहीं चाहते कि आप आगे बढ़ें :-
जब किसी इंसान के पास एक स्ट्रोंग सपोर्ट सिस्टम होता है तो वो उसे पावरफुल बना देता है . हमारे आस पास ऐसे कई लोग हैं जिन्हें देखकर हमें inspiration और मोटिवेशन मिलती है जिससे हमारा कांफिडेंस बढ़ता है . जैसे – जैसे हम बड़े होते जाते हैं हम ख़ुद को नेगेटिव लोगों से करने लगते हैं क्योंकि ये negativity बहुत जल्दी हमें अपनी चपेट में ले लेती है और हमें अपनी लाइफ में नेगेटिव एनर्जी बिलकुल आने नहीं देना चाहिए . जब कोई इंसान पॉजिटिव एनर्जी से भरा होता है तो वो अपनी लाइफ में पॉजिटिव एनर्जी से भरे लोगों को ही attract करता है।
आपकी एनर्जी जैसी होगी आप वैसे ही लोगों को अपनी लाइफ में attract करते हैं . ऐसे लोगों का साथ चुनें जो आपको खुलकर अपनाते हों , आपका कांफिडेंस बढाते हों और गलत होने पर आपको सही रास्ता दिखाने का ज़ज्बा रखते हों.अगर कोई आपके साथ बुरा बर्ताव कर रहा है तो उसे अनदेखा ना करें बल्कि जल्द से जल्द उसे बात कर सुलझाने की कोशिश करें।
डोरिस एक कॉलेज स्टूडेंट थी जो इतनी शर्मीली थी कि हर दिन उसके पति को उसे क्लास तक छोड़ना पड़ता था . उसका पति भी डोरिस के लेक्चर ख़त्म होने तक इंतज़ार करता क्योंकि वो जानता था कि वो अकेले होने से बहुत डरती थी . अगर डोरिस को क्लास में कुछ बोलने के लिए कहा जाता तो उसे घबराहट होने लगती और पैनिक अटैक आने लगता . उसके प्रोफेसर ने इस बात को नोटिस किया . डोरिस की मदद करने के लिए उन्होंने डोरिस को ” paradoxical intention ” नाम की एक technique परफॉर्म करने के लिए कहा . इसका सीधा सा मतलब ये था कि डोरिस को वो काम करना होगा जिससे वो डरती है . डोरिस इसके लिए राज़ी नहीं थी लेकिन प्रोफेसर ने उसे encourage किया।
उन्होंने डोरिस से कहा कि वो पैनिक अटैक होने पर उसे रोकने की कोशिश ना करे ताकि पूरा क्लास उसके अटैक का गवाह बन सके . लेकिन डोरिस ऐसा नहीं कर पाई . वो उस सिचुएशन में हंसने लगी जिसे देखकर पूरा क्लास उसके साथ हंस पड़ी . बस यही डोरिस के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ.हर हफ़्ते उसमें प्रोग्रेस होता जा रहा था . अब वो अपने क्लास के दोस्तों के साथ मिलकरअसाइनमेंट पर काम करने लगी थी।
कुछ महीनों बाद , वो अकेले शॉपिंग करने लगी यहाँ तक कि अकेले ट्रेन में ट्रेवल कर घर भी जाने लगी . एक दिन , उसने अपने प्रोफेसर से कहा कि वो अपने पति की वजह से निराश थी . उसने बताया ” मैं जैसे – जैसे इम्प्रूव कर रही हूँ , मेरा पति मुझे दबाने की कोशिश कर रहा है . मैं जब भी बाहर निकलने के लिए ख़ुद को मेंटली तैयार करती हूँ , वो मुझे उन खतरों के बारे में बताने लगता है जिसका मुझे सामना करना पड़ेगा.जब मैं उन चीज़ों के लिए सेलिब्रेट करती हूँ जो मैंने अचीव किया है तो वो मुझे दूर होने लगता है . ‘ इससे पता चलता है कि डोरिस के पति को उसकी आदतों और attitude में हो रहे बदलाव से ख़तरा महसूस हो रहा था.वो डोरिस जो कभी उस पर डिपेंडेंट हुआ करती थी अब वो अपने दम पर जीना सीखने लगी थी .
दोनों ने इस प्रॉब्लम को हल करने का फैसला किया.वो दोनों एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते थे . अब डोरिस पहले की तरह डर डर कर नहीं जीना चाहती थी इसलिए उसके पति ने इस बात को समझकर ख़ुद एडजस्ट करने का वादा किया.उसने साफ़ – साफ़ कह दिया कि वो बस उसे खोने से डरता था . डोरिस के पति ने ख़ुद को बदलने की पूरी कोशिश की . उसे कुछ वक़्त लगा लेकिन उसने आखिर ऐसा कर दिखाया . अब वो डोरिस का सबसे बड़ा supporter बन गया था .
नो-लॉस निर्णय कैसे लें :-
लाइफ में डिसिशन लेना किसी चैलेंज से कम नहीं है . लेकिन लंबे समय में इसे आसान और ज़्यादा इफेक्टिव बनाने का एक तरीका है.इस बात को हमेशा याद रखें कि ट्राय करके फेल होना कभी भी ट्राय ना करने से कहीं ज़्यादा बेहतर होता है . जब आप कोशिश करते हैं और फेल हो जाते हैं तो कम से कम आप उस प्रोसेस में कुछ सीखते तो हैं , कम से कम आपको एक ऐसे तरीके के बारे में पता चलता है जो काम नहीं करता.उसके बाद आप एक नया तरीका आज़मा सकते हैं . बस अपने गोल पर फोकस कर डट कर लगे रहे।
ये आईडिया डिसिशन लेना आसान और इफेक्टिव बनाता है , लेकिन कैसे ? क्योंकि कम से कम आप डर के कारण एक जगह ये सोचकर अटके तो नहीं रहेंगे कि आपको आगे बढ़ना चाहिए या नहीं . फेलियर से डरो मत क्योंकि ये सक्सेस की जर्नी का एक हिस्सा है . दुःख की बात तो तब होती है जब आप कोशिश करने की हिम्मत भी नहीं करते . इमेजिन कीजिए कि आप सालों तक यही सोचते रहे कि ” अगर ऐसा हो गया तो , अगर वैसा हो गया तो ” , तब आपको बाद में पछतावा होगा कि आपने एक बार कोशिश भी नहीं की.इसलिए ट्राय करना और फेल होना एक no – loss डिसिशन कहलाता है.फेल होने के बावजूद भी आपअपनी गलतियों से कुछ ना कुछ ज़रूर सीखते हैं . एलेक्स एक लॉ स्कूल का स्टूडेंट है.वो अपने पिता का बहुत सम्मान करता था।
इसलिए उसने उनके रास्ते पर चलने का फ़ैसला किया और लॉ स्कूल में एडमिशन लिया . दो सालों तक उसके बहुत अच्छे grades आए . लेकिन फ़िर एलेक्स लॉ के प्रोफेशन के बारे में दोबारा सोचने लगा.उसने महसूस किया कि वो हमेशा झगड़ों और बहस के बीच में नहीं रहना चाहता था . एलेक्स लोगों की मदद करना चाहता था लेकिन एक अलग तरीके से.उसे लगता था कि एक लॉयर बनने के लिए वो बहुत नरम दिल था।
इसलिए एलेक्स ने साइकोलोजिस्ट बनने का फ़ैसला किया . उसके पिता ने करियर बदलने के फैसले में उसे सपोर्ट कर आशीर्वाद तो दिया लेकिन उन्होंने एक शर्त भी रखी कि वो उसकी पढ़ाई का खर्च नहीं उठाएंगे.इससे एलेक्स दोबारा सोच में पड़ गया लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग खड़ा रहा . उसने लॉ स्कूल छोड़कर साइकोलॉजी के स्कूल में एडमिशन लिया . लोग उससे कहते कि उसने दो कीमती साल यूहीं बर्बाद कर दिए लेकिन एलेक्स को अब यकीन था कि वो लॉयर नहीं बनना चाहता था . एलेक्स ने अपनी फ़ीस भरने के लिए पार्ट टाइम कम करना शुरू किया . उसने कड़ी मेहनत की और उसकी अच्छी खासी कमाई भी होने लगी . काम के दौरान उसकी उस लड़की से मुलाक़ात हुई जो बाद में जाकर उसकी हमसफ़र बनी . दो पार्ट टाइम जॉब की मदद से अपनी फ़ेलोशिप कम्पलीट करने के बाद अंत में एलेक्स को डॉक्टरेट की डिग्री मिली .
इस बात पर विश्वास बनाएंरखें कि आप जो भी रास्ता चुनते हैं उसमें आने वाले किसी भी चैलेंज को आप हैंडल कर सकते हैं और आप अपना गोल अचीव करने में ज़रूर सक्सेसफुल होंगे . उस रास्ते में आपको फेलियर का भी सामना करना होगा लेकिन हिम्मत कर दोबारा उठकर आप एक नया रास्ता आज़मा सकते हैं.आपके सामने कई मौके आएँगे बस आपमें वो रिस्क लेने की हिम्मत होनी चाहिए . रिस्क लेकर ही आप अपने डर को दूर कर सकते हैं और अपने गोल तक पहुँच सकते हैं . आपको ख़ुद पर भरोसा करने की ज़रुरत है.जब भी आपको डर लगे तो ख़ुद से बस इतना कहें कि ” मैं इसे हैंडल कर सकता हूँ ” .. . ” मैं इसे हैंडल कर सकता हूँ।
निष्कर्ष :-
इस बुक में आपने सीखा कि कैसे डर हम पर हावी होकर हमें आगे बढ़ने से रोकता है.लेकिन एक सच ये भी है किये डर तो हमेशा यहाँ रहने वाला है . लेकिन अगर हमने इसे एक्सेप्ट कर इसका सामना करना शुरू कर दिया तो हम इसे दूर कर सकते हैं . आपने ये भी जाना कि डर के तीन लेवल होते हैं . पहला लेवल उन चीज़ों के कारण होता है जो असल में हो रहा है . दूसरा लेवल हमारे मन में मौजूद थॉट्स और फीलिंग्स की वजह से होता है.तीसरा लेवल , सबसे बड़ा डर वो होता है जब हम कहते हैं ” मैं इसे हैंडल नहीं कर सकता ” .
आपने ये भी समझा कि हम जब भी किसी नई सिचुएशन में होंगे तो हमें डर लगेगा . लेकिन अगर हम अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलते हैं , बहादुर बनने की कोशिश करते हैं और रिस्क लेते हैं तो हम इस डर को हरा सकते हैं .
आपने ये भी जाना कि आपके अंदर एक पॉवर मौजूद है , आपके डर को कंट्रोल करने का पॉवर.ये आपकी लाइफ और आपकी खुशियों को कंट्रोल करने का पॉवर है . आपने अपने ऊपर ज़िम्मेदारी लेने के बारे में भी सीखा . कभी भी दूसरों को दोष ना दें . आपके साथ जो कुछ भी होता है वो आपके ही एक्शन का रिजल्ट है . इसलिए अगर आप अपना व्यवहार बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी भी बदल सकते हैं .
आपने पॉलीएना प्रिंसिप्ल के बारे में समझा . इसे नासमझी और अनरीयलिस्टिक कहना गलत होगा . ये सच्ची ख़ुशी पाने का तरीका है . चीज़ों के पॉजिटिव पहलू को देखना सीखें . अगर आप पॉजिटिव होंगे तो आप अपने लाइफ में और भी ज़्यादा पॉजिटिव चीज़ों को attract करेंगे .
आपने सपोर्ट सिस्टम के इम्पोर्टेस को भी समझा . ऐसे लोगों के साथ रहे जो दयालु , खुशमिजाज़ और पॉजिटिव सोच रखते हों.दूसरों को समझने की कोशिश करें तब जाकर वो भी आपको समझने लगेंगे और आपकी मदद करेंगे .
आपने no – loss डिसिशन के बारे में भी सीखा . ये तब होता है जब आप कुछ ट्राय करने की हिम्मत दिखाते हैं भले ही उसमें फेल क्यों ना हो जाएं , कम से कम आपने कुछ सीखा तो सही . असली फेलियर तो तब होती है जब आप कोई कदम ही नहीं उठाते . क्या अब भी आपको डर से डर लग रहा है ? उम्मीद है कि इस बुक ने आपकी कुछ मदद की होगी . डर महसूस करना गलत नहीं है.हिम्मत कर आगे बढ़ें और जब भी आपको डर लगे ख़ुद सेबस इतना कहे ” मैं इसे हैंडल कर सकता हूँ “।
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